भाग्य की विडम्बना | irony of the fate | bhagya ki vidambana

भाग्य की विडंबना

bhagya ki vidambana in hindi


   पत्नी का रिश्ता अटूट बंधन की भाँति होता है किन्तु कभी- कभी एक पक्ष की छोटी सी भूल, गल्ती दो लोगों की जिंदगी पूर्ण रूप से प्रभावित कर देती है और एक प्रकार से दर- दर की ठोकरों की मोहताज बना देती है!
      hi friends आज हम आपको इसी विषय पर एक हिंदी रोचक कहानी    बताने वाले है और उम्मीद करते हैं कि आपको पसंद आयेगी!

हिंदी स्टोरी
जीवन का हेर फेर

     विनय गाँव का एक गाँव का साधारण सा गरीब  परिवार का नवयुवक था पिता का साया बचपन में ही उठने के कारण सारी जिम्मेदारी माता द्वारा ही पूरी की गई थी! अब तो विनय भी  12वी पास करके अपने फूफा जी के साथ दिल्ली आकर  एक केमिस्ट शॉप में सेल्समैन की नौकरी करने लगा था! उसे दिल्ली आये हुए लगभग वर्षभर से ऊपर हो गया था और वह खूब मेहनत कर अपनी पारिवारिक स्थिति सन्तुलित करने में लगा हुआ था | 

     अब तो विनय की माँ  सारे गाँव भर एवं नाते रिश्तेदारों को बोलकर विनय के लिए एक सुंदर सी लड़की की तलाशने में लगीं हुईं थी ! जब समय का साथ  मिलता है तो उलझे हुए काम भी आसानी से बन जातें हैं कुछ ही समय में  विनय की माँ विनय के लिए लडकी तलाशने में सफल हुईं |और चट मंगनी पट ब्याह    के साथ विनय,और स्वाति को विधिवत ढंग से विवाह बंधन में बांध दिया गया !
    विवाह के कुछ दिनों पश्चात विनय की माँ ने  बहू को साथ रखने को कहा, विनय ने माँ को लाख मनाया पर सब बेकार , बेटा जब तक हाथ पाव में जान है तब तक चलने फिरने दे फिर तो तुमने ही देखना है | बेबस होकर विनय स्वाति को दिल्ली लेकर आ गया |
  विनय  दिनभर  केमिस्ट शॉप में व्यस्त रहकर अपने परिवार के भरणपोषण हेतु जीतोड़ मेहनत करता कहीं कोई कमी न रह जाए|
  दोनों का जीवन बडे आनन्दमय ढंग से व्यतीत  हो रहा था मगर उनको कहाँ पता था कि  आने वाला वक्त उनके भाग्य लिए अनोखी चुनौतियां लेकर आ रहा है |
     स्वाति कुछ दिनों से विनय के ऑफिस जाते ही सामने वाले  मकान मालिक के इकलोते लडके साहिल के संग प्रेम प्रसंग में पडने लगी |
     गरीबों के बच्चे अक्सर कामयाबी की दहलीज पर पहुँचने में सफल हो जाते हैं किन्तु पैसे वालों की औलादों को बचपन से ही पैंसो की लत नाकारा और बिगडैल बना देती है!
      साहिल विनय के सामने वाले मकान मालिक की इकलौती संतान थी और वह लोग उसे सदैव आंखों पर बेठा कर रखते थे बच्चों को जरुरत से ज्यादा प्यार और ढील बच्चों को जिद्दी और नाकारा बनाने के लिए काफी होता है |

स्वाति को लोभ, तृष्णा, प्रेम जाल की ओर  धकेल रही थी !अब क्या था दोनों का मेलजोल पहले के मुकाबले दिन- प्रतिदिन परवान चढने लगा! प्रेम मधुमेह रोग की तरह ही होता है ! वक्त के साथ दोनों की दूरियां कम होती गई और स्थितियां बेकाबू होने लगी |
    विनय के ऑफिस जाने से लेकर घर आने तक नित्य दोनों सारी सीमाएं लांघने लगे,  पडोसियो ने कई बार विनय को आगाह किया ! परन्तु उसे स्वाति पर खुद से ज्यादा भरोसा होने के कारण कुछ ज्यादा बात नहीं की और रोजाना की तरह सब चलता रहा|
   एक रोज़ केमिस्ट के मालिक की फोन कॉल पर विनय को केमिस्ट थोड़ा जल्दी बन्द करना पड़ा और बडी़ आशाओं के साथ वह जलेबी  लेकर घर पहुचा|
  गली में उसके घर के आगे महंगी बाईक देख  वह कुछ सोचता इससे पहले सामने गेट पर खडी़ काकी ने विनय को टोकते हुए अरे बेटा आज जल्दी आ गया जी काकी पर यह बाईक आपके घर कोई.... नहीं रे यह लड़का तो लगभग  तेरे जाने के बाद और आने से पहले रोजाना ही आता रहता है  तुझे बताया तो था|
   चल आज जल्दी आया है तो खुद ही देख ले विनय बिना कुछ कहे सोचने लगा सही तो कह रही काकी|
   विनय जेब से तालें की दुसरी चाबी टटोलते हुए आगे बढ़ गया उसके पास हर समय रहतीं थी! और विनय उस चाबी को  कभी कभार प्रयोग करता था |
   विनय का दरवाजा खोलना था की ...... सब कुछ आमने सामने देखकर स्वाति, साहिल,  हक्के बक्के से रह गए!
स्वाति और साहिल को असहज स्तिथि में देखकर विनय के माथे पर बल पड गयें और आंखों में खून उत्तर आया गुस्से से तमतमा विनय कुछ बोलता वह दोनों तितर-बितर वाली स्तिथि में आने लगे विनय ने यह सब देखकर अचानक रुख़ बदलते हुए रुको आप लोगो को भागने जैसी कार्य करने की जरूरत नही है! अपनी अपनी जगह ज्यों के त्यो बैठे रहो!
     और एक 🪑पर जाकर बैठ गया वह दोनों  विनय पर टकटकी लगाये देखते रहे आखिर ये करना क्या चाहता है!
  विनय बड़ी गम्भीरता और  सूझबूझ  से देखो स्वाति मै आप लोगो के साथ मारपीट गालीगलौज जैसी हरकते करके पुलिस के चक्कर में बिलकुल नही पड़ता चाहता जिससे मेरा केरियर और भविष्य दोनों दाव पर लगे और आज का असहनीय गुस्सा मुझे ......... |
माना कि तुम अभी माफी मांग लोगी मगर फिर वही हरकते दुबारा होंगी और हो सकता हैं कि  उस दौरान मै अपने गुस्से पर संयम न रख पाऊँ , इससे बेहतर है आप लोग अपने हिसाब से रहो , आजाद पंछियों की तरह  हम लोगों  के लिए यही बैहतर और फायदेमंद रहेगा !

   आज आप यहाँ  रह सकतीं हो कल मै     तलाक के पेपर तैयार करा दूँगा कल के बाद आपका और मेरा कोई रिश्ता नहीं है!
   अगले दिन से  विनय ने आनन फानन    में तलाक की सारी कार्रवाई पूरी कराई और उसी हफ्ते केमिस्ट की नौकरी , कमरा, और स्वाति को छोड़कर हताश मन से गाँव चला गया |
  स्वाति और साहिल के लिये जीवन पथ प्रशस्त हो गया । प्यार अंधा होता है  फिर क्या शादीशुदा और क्या अविवाहित ! साहिल तो पहले से ही मनमानी वाला लड़का था उसने जल्दी ही स्वाति के साथ विवाह कर  घर ले आया |
    स्वाति  खुद पर फूली न समाई  मानों सारी खुशियाँ ईश्वर ने उसकी झोली में उड़ेल दी हो धन, वैभव ,और सम्पत्ति सब कुछ तो एक साथ मिल गया उसे और क्या चाहिए था! जीवन बडे आंनदमय ढंग से कटने लगा |
      कहते हैं कि वक्त की झोली में किस के लिए क्या रखा है कोई समझ नहीं सकता ऐसा ही कुछ विनय के साथ भी हुआ!
  कुछ समय पश्चात विनय गाँव से अच्छी नौकरी की तलाश में मथुरा निकल जाता है और एक छोटी सी केमिस्ट की दुकान में  तजुर्बा अनुसार सेल्समैन की नौकरी लग जाता है! केमिस्ट ऑनर निसंतान होने की वजह से विनय को अपने ही घर में रहने के लिए कहता है !
विनय भी पूरी लगन ईमानदारी और मेहनत से काम करता है जिससे कुछ ही दिनों में  केमिस्ट दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की  करने लगा !
     विनय के काम और व्यवहार से प्रभावित केमिस्ट ऑनर ने विनय से शादी के विषय में पूछा तो विनय से रहा नहीं गया और मानो दूध का उबाल आ गया सारी बातें जानकर केमिस्ट ऑनर ने बड़ी गम्भीरता से  एक फैसला लिया! और विनय और अपनी ही रिशतेदार की बेटी सुहानी का विवाह करवा दिया!
    जीवन में सदैव हर्षोल्लास कहाँ रहता है जीवन तो नदी के दो पाटों की भाँति होता है कभी सुख तो कभी दुख
    अभी स्वाति और साहिल की शादी को मुश्किल से सालभर भी नहीं बिता था कि एक रोज़ साहिल दोस्तों के साथ दोस्त की शादी से लौट रहा था!
जवानी का जोश शराब का सुरूर यारो का साथ नशे में चूर देर रात के अंधेरे में दुर्घटनाओं को दावत देने जैसे होता है  साहिल  भी शराब के में चूर दोस्तों के साथ एक विवाह समारोह से लौट रहे थे कि अचानक से  एक तेज़ रफ़्तार कार से जा टकराया और सड़क दुर्घटना में साहिल इतना चोटिल था कि मौके पर ही साहिल.........
भाग्य की विडम्बना देखिये जिस स्वाति के पास धन, बैभव , ऐश्वर्या की कमी नहीं थी वह अपनी बुजुर्ग सास के साथ  मथुरा के पुश्तैनी मकान में रहकर चंद रुपयो के लिए एक स्कूल में बच्चों के लिए भोजन आया माता की नौकरी कर  दिन गिनने लगी और कभी कभार सास की तबियत पर तंग हाथ से दवाईयों का बोझ ढोती रही!
  विनय और सुहानी के घर में एक सुंदर सा बच्चा दस्तक देता है जिसको केमिस्ट ऑनर के अनुकूल अमन नाम दिया जाता है ! समय गति से  बढता रहा! देखते देखते  अमन अब पांचवीं कक्षा का विद्यार्थीमें  था!और केमिस्ट ऑनर स्वर्ग सिधार चुके थे|

    कुदरत का करिश्मा देखिए एक दिन सुबह- सुबह एक महिला विनय के केमिस्ट पर आकर विनय को दवाईयों का पर्ची देते हुए! ये दवाईयां कितने की होंगी!  विनय आवाज सुनते ही पहचानने का प्रयास कर कुछ नहीं बोला और दवाईयां निकाल कर पर्ची के साथ सामने रख दी !
  स्वाति पैसे कितने हुए?? विनय रहने दीजिये कभी फिर दे दिजिए शायद आज आपका हाथ तंग है! स्वाति ने जौर दिया पर विनय ने पैसे लेने से इंकार कर दिया!
    एक दिन पुनः स्वाति वैसे ही दवाईयों का पर्ची लेकर फिर आई जिसपर विनय ने  बिना शुल्क के दवाईयां दे दी मगर हिम्मत करके पुछ ही लिया ये बुजुर्ग महिला कौन है जिसके लिए आप ये जहमत उठा रही है स्वाति दबे स्वर में मेरी सास है अक्सर बीमार रहती है! और चली गई दोनों के आमने सामने आने से दोनों के जहन में कई तरह की उथल पुथल सी मच जाती थी !
  दिन प्रतिदिन स्वाति अब अक्सर
ख्यालों में खोयी सी रहती  उसे ओ पुराने दिनों की याद रह रहकर सताती वह अकेले में अक्सर छुप छुपाकर रोया करती थी मगर अब किया भी क्या सकता था ! 
  जिंदगी कुछ इस कदर गुजर रही है ! 
मानो रेत की तरह हाथों से फिसल रही है, 
किसे कुसूरवार कहे हम इन लकीरों का! 
बेवजह जिंदगी वक्त का इंतजार कर रहीं हैं |

  विनय का बेटा अमन बार बार उत्साहित होकर पापा चलों ना जल्दी करो ptm में आज परीक्षाफल दिखाया जायेगा है विनय हा बेटा चलते हैं |
       बाल हठ स्त्री हठ  के आगे भला किसी की चलीं है जो आज विनय की चलती अन्ततः विनय को भी स्कूल जाना ही पड़ा|
  एक मर्तबा फिर विनय के आश्चर्य का ठिकाना न रहा जिस स्वाति को वह आयेदिन दवाई देता रहता था वह उसे स्कूल में आय भोजन माता के रूप में दिखाई देती है जिससे  दिमाग की सुईयां जैसे बारह पर जाकर अटक गई हो! वह जैसे तैंसे  पि टी एम के बाद सीधे स्वाति से मिलने के लिए जाता है!
  बाहर निकलते ही स्वाति को सामने देखकर क्या मै आपसे कुछ समय बात कर सकता हुँ ! स्वाति जी कहिएगा आप यहाँ इस स्थिति में स्वाति जी,
  और वह लडका मेरा मतलबआपका आपके पतिदेव स्वाति वह एक सड़क दुर्घटना में.......
मगर आपकी तो वहाँ बहुत बड़ी प्रोपटी थी स्वाति सब चाचा ताऊ लोगों ने हडप ली है यहाँ एक पुश्तैनी मकान है उसी में सास बहू दिन गिन रहीं हैं सास भी अक्सर बीमार रहतीं है उन्ही के लिए मै आपसे दवाईयां.....|
   खैर अपनी सुनाओगे विनय सब बढिया और विनय निकल गया! दोनों के मन मस्तिष्क में बड़ी उथल पुथल सी मची थी  |
   स्वाति दिनभर उसी मुलाकात के विषय में सोचतीं रहीं है कहते हैं कि सोने की किमत खोने के बाद महसूस होती है यही हाल कुछ स्वाति का भी था!
  और स्कूल से छुटने पर घर जातें वक्त भी पछतावा आत्मग्लानि के उधेड़बुन में स्वाति इतनी खो गई कि सामने से आती  कार से टकरा गई!  चोट इतनी गहरी थी कि होस्पिटल तक पहुँचाते - पहुँचाते स्वाति की जान ले गईं!
  स्वाति के पर्स में ज्यादा कुछ तो नहीं एक दवाई का पर्ची जरूर मिल गई जिसपर विनय के केमिस्ट का फोन नम्बर जरूर लिखा था! फोन करने पर विनय आनन फानन में होस्पिटल तक पहुचा मगर तब तक बहुत देर हो चुकी थी!
  अंततः विनय ने मानव धर्म के नाते दाह संस्कार से लेकर अंतिम क्रिया कर्म  की पूर्ण प्रक्रिया निभाते हुए स्वाति की बुजुर्ग सास की दवाईयों और खान पान की जिम्मेदारी  लेकर एक भले इंसान का फर्ज अदा किया ||
      मित्रों यदि आपको इस कहानी का कोई भी अंश पसंद आए जिससे कोई प्रेरणा मिलती हो तो कृपया share coment जरूर करे जिससे हमारे उत्साह बढाने में मददगार साबित हो सकती है |
 


   
 

 

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