गढ़वाली कविता ॥ garhwali kavita

 गढ़वाली कविता

व्‍वींणा चुले स्वीणों मा तू,
ज्यादा स्वाणी लगदि |
तू भी त सुपन्यो म ऐकि,
म्यारा लुकदी-छुपदी |

तेरी मयऽऴदू मिठी माया ,
मै बुलेकि इने लाया |
कतगा समझै यो मन ,
फिर भी त्वे जने गाया |
स्वीणां - सुपन्यो म मै तू ,
सैर्या राती हेरदी |
तू भी त सुपन्यो म ऐकि,
म्यारा लुकदी छुपदी |



garhwali bhasha mein kavita

सोलह सिंगार केरि सुपन्यों म ऐ 
सौंजड्या सुपन्यों म आणि जाणि रे !
"मुल मुल हेंसि आंखि नवान्दि
शर्मे मुखड़ि जादा स्वाणी लगदी
तू भी त सुपन्यो म ऐकि, 
म्यारा लुकदी-छुपदी |

जुड़ि सुमार सि माया बणि रे 
कीलि तांदी सि मैमा तू जुड़ि रे
""तेरा सांसा उम्र य सारि" 
तेरा सांसा उम्र या पूरी!
कटे जालि जिन्दगी mf |
तू भी त सुपन्यो म ऐकि, 
म्यारा लुकदी-छुपदी | 

घास गडोऴी मुंड रान्द
लटुऴि उड़ि मुख म आन्द
फ्योऴि जनि स्वाणी मुखडि
लटुल्यून ढके जांद
लाल बुरांस ऊँठडि तेरी
जादा स्वाणी लगदी
तू भी त सुपन्यो म ऐकि,
म्यारा लुकदी छुपदी |

तुमरु ख्याल तुमरी माया
सदनी हिया दगड़ी राया
व्‍वींणा हो या स्वीणा म तू
मैन भी हिया त्वेई पाया
दगड़ी हमरि यून जनि
दिया बाती जगदि
तू भी त सुपन्यो म ऐकि,
म्यारा लुकदी छुपदी |

C@R अतुल शैली
सर्वाधिक सुरक्षित

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