गढ़वाली कविता
नमस्कार दोस्तों आप जिस प्रकार जोशीमठ के दरकते हालातों से बखूबी जानकर होंगे! वहा हर आदमी ठण्ड से सिकुड़ता बेघर अपने अधिकार की लड़ाई लड़ रहा है ऐसे में एक वृद्ध महिला अपने बच्चों को जोशीमठ बुला रही है जो कि नौकरी के लिए जोशीमठ से बाहर जीवन यापन करते हैं |
निम्न पंक्तियाँ क्षेत्रीय भाषा गढवाली में लिखने का छोटा सा प्रयास किया गया है! गढ़वाली कविता जोशीमठ पर आधारित है |
|| खुदेन्दू जोशीमठ कू दर्द ||
|| अतुल शैली ||
ओ लठ्याऴा भेंटी जादि,
गौं गुठ्यार"चौका थैं" 2
जोशीमठ की टुटदि उजड़ि
कुड्यू थे , देखीं जै जन्मभूमि हेरि जै!
ओ लठ्याऴा भेंटी जादि |
ग्वाया लेनी जै गुठ्यारि ,
जै भीतरी तू ध्वै -तपाई
तू, जै कुठड़ि म तु ज्वान ह्वे " 2
ऊँ बटो-घाटौं हेरि जै !
यीं जन्मभूमि हेरि जै |
यूं गोर-भैंस्यूं कू क्या होलू,
केकी द्येऽऴी म जी रोंलू ,
,स्वारा चली गिन "बांठु दे" 2
बल मुल्क बिरणू हुणू रे !
यीं जन्मभूमि हेरि जै |
धै लगेनि धवड़ी मारी,
हथ जोड़ी की त्वे भट्याई,
हे नर्सिंग " नारैण रे"2
ये कुछ *मठ* ख्याल केरि !
थीं जन्मभूमि हेरि जै |
दाता जरसी देभि द्यालू
द्वी खंडू कू सांटु -बांठू,
जन दूण म सि "मांणू रे "2
ये हिया कने बुथ्याणं रे !
यीं जन्मभूमि हेरि जै ||
C@R अतुल शैली
| | आपका प्रियवर अतुल शैली ||