गैरसैण कू जग्वाऴ gairasain | गढवाली कविता

 

गैरसैण कू जग्वाऴ
================
आज आज भ्वाऴ- भ्वाऴ
हर दा ढुंगा चडीं माटू ध्वाऴ
मोरदा - मोरदा म्यारा मैत्यून
पयडी लगैं लोग चडै उकाऴ
मुंड फोडी लोग बाटा पेटै
अपणों ख्वैकि चुल्हा सुऴकैइ
धार-धार गौं - गाड़ उमाऴ
बडा जतनूं से तब राज मिली
फिर आज जग्वाल ब्याल जग्वाल
जग्वाल -जग्वाल मा बीत गैनी बीस साल
भौत ह्वैगे यूं बीस वर्षूं कू जग्वाल
चलो भुलों जगावा छिल्लू मारा फाल
लगावा धाद, पैटा आज
फिर गैरसैण राजधानी
की मांग करदा
जु  ह्वैगीनी  शहीद उत्तराखण्ड
आंदोलन मा ऊ पित्रू कू श्राद
का नाम पर नयी शुरुआत करदा
एक नयी पहल नयु प्रयास करदा
गैरसैण राजधानी की मांग करदा ||
      || C@R अतुल शैली ||
   सर्वाधिक सुरक्षित ||

एक टिप्पणी भेजें

Devendrasinghrawat484@gmail.com

और नया पुराने