सुपन्यों म supnyo ma | गढवाली कविता

 

   || सुपन्यों म ||
व्हीणा चुले सुपन्यों मा तू, m
ज्यादा स्वाणी लगदि |
तू भी त सुपन्यो म ऐकि, F
म्यारा लुकदी-छुपदी |
व्हीणा चुले सुपन्यों मा तू,

तेरी मयऽऴदू मिठी माया , F
मै बुलेकि इने लाया |
कतगा समझा यो मन ,
फिर भी त्वे जने अया |
सुपन्या - सुपन्यों म मै तू"2
सैर्या राती हेरदी |
तू भी त सुपन्यो म ऐकि,
म्यारा लुकदी छुपदी |



सोलह सिंगार केरि सुपन्यों म ऐ m,
सौंजड्या सुपन्यों म आणि जाणि रे !
"मुल मुल हेंसि आंखि नवान्दि"2
शर्मे मुखड़ि जादा स्वाणी लगदी
तू भी त सुपन्यो म ऐकि, f
म्यारा लुकदी-छुपदी |

जुड़ि सुमार सि माया बणि रे m,
कीलि तांदी सि मैमा तू जुड़ि रे F !
""तेरा सांसा उम्र य सारि" 2 mf,
तेरा सांसा उम्र या पूरी!
कटे जालि जिन्दगी mf |
तू भी त सुपन्यो म ऐकि, f
म्यारा लुकदी-छुपदी | |

C@R अतुल शैली
सर्वाधिक सुरक्षित

एक टिप्पणी भेजें

Devendrasinghrawat484@gmail.com

और नया पुराने