हमरि बोली हमरि पछ्याण | गढ़वाली कविता |

 

|| हमरि बोली हमरि पछ्याण ||




    ज्यू बोद कि भागू इतगा ,
  मारी फाऴ बण बुग्याल
ड़ांड्यू अटगि तैरि नयार
सैंणा मनखिम् सोरि जौं
पर क्या कन मि लाचार छौं
घिंडुडि तरह उड़ि नि सकुदू
पाणी सी मि बोगि नि सकुदू
तभी त मि अभी अजाणा छौं
युयीं लुखू कि पछ्याण छौं
कुछ छन् भगणा भारु बुकणा
मंचू बिटिन जागरूक करणा
फंची लेकि धाद छन् मरणा
कुई त बतै दे मै भी बिंगै दें
क्यो पेथर रे जांदू द्वीयू का मिलदे
क्या दोष च म्यारु कुई त बतावा
उठा रे जागो बीज बचावा
बोऴि अपणी हर्चऽण न द्यावा


   C@R     अतुल शैली

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