अटल सत्य atal satya

तन काया है क्षणभंगुर , 

मन बसेरा मोह का |

मोह जगाये काम को , 

काम जनक है क्रोध का ||


क्रोध कलह है अरु विनाश, 

क्रोध व्याप्ति से कीर्ति का नाश |

तन- काया तो आधार है

साक्ष्य सदा से कालखंड में ||


ये तन क्या लेकर आया था, 

ये तन क्या लेकर जायेगा |

 फिर काहे की चिंता चिंतन, 

 इस  धरा का इस  धरा पर 

धरा का धरा रहा जायेगा ||


ना तू मन को दुखमय कर, 

ना शोक मना कुछ जाने का |

आना जाना चक्र है उसका, 

चक्र उस चक्रधर का, चक्र 

कोई समझ नहीं पाया है ||

©® देवसिंह गढवाली

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