"लाटी " वो शब्द,
जिसे कभी प्यार से पुचकारा गया,
कभी गुस्से में तिरस्कारा गया,
"लाटी" औरत का वह स्वरुप,
जहां भोलेपन में उसे चालाकियां नही आई ,
"लाटी "जो बड़ों के सम्मान में,
हमेशा सिर झुकाए खड़ी है,
कभी पूछा नही किसी ने,
अच्छा लगता है मुझे भी,
मखमली हरी घास पर ठहरी,
ओंस कि बूंदों पर नंगे पांव दौड़ना,
अच्छा लगता है मुझे ,
खुले आसमान को देखना,
रात में चमकते हुए चांद को देखना,
हां, अच्छा लगता है,
आईने में खुद को संवरते हुए देखना,
और दिल में यह ख्याल लाना,
मै भी औरों कि तरह हूं,
सुंदर, शीतल, कोमल ह्रदय रखने वाली,
क्या हुआ जो सुंदर काया नही,
खुबसूरत बहुत हूं,मन से, विचारों से,
वो मन जो हमेशा कहता है,
अगर "लाटी " तुम्हारी तरह होती है,
तो "हां " " हूं मै लाटी," ।।