यु हमरु नयु साल नी | yu hamaru nayu sal ni

 

गढ़वाली कविता

सभी मित्रों को सप्रेम नमस्कार ! 

  मित्रों 1 जनवरी को हम बड़ी आसानी से कह देते हैं नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ क्या हम विदेशी पद्धति को आगे बढाकर मूर्तरूप नहीं दे रहे हैं ???? एक बार विचार करे एक हमरा मित्र राष्ट नेपाल है जो आज के आधुनिक युग में भी अपनी संस्कृति सभ्यता को बरकरार रखकर संजोये हुए है और सारी संस्कृतियों के साथ साथ नववर्ष को चैत्र मास में मनाते है! और एक हम first foreign policy अपना रहे हैं हमरा मकसद किसी की सभ्यता संस्कृति को ठेस पहुँचाना नहीं है किन्तु अपनी सभ्यता संस्कृति को भी बरकरार और बचाये रखने का प्रयास भी जरूरी है  | 

मित्रों निम्न पंक्तियाँ  गढवाली भाषा में लिखी गई है जिनका अर्थ किसी अन्य सभ्यता वालो को ठेस पहुंचाने जैसा बिल्कुल भी नहीं है 

|| यु हमरु नयी साल नी ||

गढ़वाली कविता

अज्युं फूलु मा फुलार नी ,

डाल्यू पर मौऴ्यार नी !
पाऽऴ कौम्पणी छीन ,
डाऴी बौटी डांडी कांठी ,
शितऴू घास धरती कि माटी!
लोक बुना छी नयू साल ऐगे ,
पर अज्यू यु हमरु नयु साल नी |

गौर बखरा कुकडा  भेर,
जडऽऴ मुना कुकर भैर!
छज्जम् बैठी बूढ दादी,
क्या बुना छी नेई जमना ,
छोर छ्वारा नौना ब्यारी,
जु विदेशी रंगमा रंग्ये गैनी!
अज्यू यु हमरु नयु साल  नी |

न पुष का मैना  हंसी उलार,
न हमरि रीत न हमरु त्युहार !
कैकु सुधि बोऴेणा व्हाऴा,
हेंऽका कि रीत पर खाऴा म्याऴा,
अज्यू घडैक जग्वाऴ करा!
रे अज्यू घडैक जग्वाऴ करा!
फागुन चैत्र घाम चमकऴा,
फ्योऴी बुरांस पर ऐऴि ज्वानी!
अज्यू यु हमरु नयु साल  नी  |

मकरैणी पंच्चमी की ऋतु बहार,
ग्यीराऴ लया पर आलु फुलार  !
चौछोडी व्हाऴु हेर्याऴि कु राज,
धुन्धम सुधि किले ब्यौऴ्य बण्या,
भेर घाम कु कखी नाम नी!
अज्यू यु हमरु नयु साल  नी |

देश कू लेनदेन कर्जपात,
जोड़ तोड़ पेन्च्छु उधार ,

मार्च फाइनल ठेका की शुरुआत!
देश कु बजट भी चैत्र म खुलद,
रीतिरिवाज अज्यू तक बदलीं नी!
पर अज्यू यु हमरु नयु साल नी ||


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