याद पुरानी,

 रंग बिरंगी रोशनी से जगमगाता  हुआ शहर , जहां जिंदगी चौबीसों घंटे सड़कों पर दौड़ा करती है, यहां लोगों के पास एक दूसरे के लिए समय नही है, यहां लोगों को चिंता है तो टेबल पर रखे बिलों के भुगतान की, बढ़ते हुए दुध के दाम कि और महंगे होते फल सब्जी और अनाज की,
वहीं दूर मेरे गांव के खेतों कि पगडंडियों पर शुकून बसता है, हां थोड़ा उदास जरूर है गांव मेरा, लेकिन उम्मीद है उसे कि शहर में बसने वाले एक दिन लौट कर आएंगे,
बंजर होते खेत ,खंडहर होते मकान, और गुजरा वक्त,
अकसर आवाज देकर  हमें बुलाते है _ कहते हैं लौट आओ
उस समय में जहां छोटी छोटी जरूरतें थी और बड़ी बड़ी खुशीयां थी, जहां हर मौसम एक नया अनुभव हमें देकर जाता और वो पुराना दौर जो हमें एक दूसरे से प्यार करना सिखाता था,

आज शहर के एक बड़े से टी बी शोरूम में ग ई तो मुझे अपने बचपन के ब्लेक एंड व्हाइट टी वी कि याद आ गई,
कितनी अजीब बात है आज टी बी का आकार कमरे के बराबर हो गया और देखने वाले चंद लोग,

एक समय ऐसा था जब टी बी का आकार बहुत छोटा हुआ करता था, और देखने के लिए सारा गांव आता था , आज हर घर में टी बी है लेकिन एक समय ऐसा था जब गांव में दो चार ही टी बी हुआ करती थी, आज टी वी पर एक से बढ़कर एक चैनलों पर अच्छे से अच्छे प्रोग्राम आते हैं लेकिन नम्बर वन पर डी डी वन ही रहेगा, यह वह चैनल था जिसने गांव, परिवार और लौगो को एक दूसरे से जोड़ कर रख दिया था, क्या छोटी जात क्या बड़ी जात ,टी बी का बटन घुमाते ही लोग सब कुछ भूल जाते,

उस समय प्रोग्राम अकेले नही देखे जाते थे, घर के बड़े बुजुर्ग धार्मिक सिरीयलो को देखते समय बच्चों को अपने साथ बिठा कर प्रोग्राम देखते, और जब बच्चों के प्रोग्राम आते तो दादा दादी उनके साथ होते ,

आज भी याद है मुझे लगभग तेरह चौदह साल कि थी जब डी डी वन पर शक्तिमान आता था,जिसे देखने के लिए हम खेतों का काम छोड़कर घर आते थे , कभी कभी सिरीयल शुरू होते ही लाईट चली जाती थी, फिर कमरे में जितने भी बड़े छोटे दर्शक होते बिजली वालों को उतनी गालियां दी जाती ,

बारिश या तूफान से जब छत पर लगा एंटिना घूम जाता तो घर का एक सदस्य घर कि छत पर घंटेभर  एंटिना घूमाता ,टी बी ठीक होने पर जब वह सदस्य कमरे में पहुंचता तब तक फिर से सिग्नल चले जाते, प्रोग्राम देखने का इतना जुनून था कि वह सदस्य फिर से छत पर चढ़ जाता,

सप्ताह कि दो फिल्मों के लिए शनिवार और रविवार का लंबा इंतजार होता, रंगोली के गानों को टी बी कि तेज आवाज में सुना जाता, बुधवार और शुक्रवार के चित्रहार के साथ रात के भोजन का आनंद लिया जाता,

धार्मिक सिरीयल आने पर दादी कि पड़ोस वाली सहेलीयों को बुला कर लाने का काम हमारा होता था, दादी अकसर कहती थी कि रामायण आने पर गांव के सारे लोग खेतों का काम छोड़कर आया करते थे सिरीयल शुरू होते ही सारे लोग  जमीन पर बैठकर जय श्री राम बोलकर बड़े ध्यान से सिरीयल देखा करते, रामायण उस समय सबसे लोकप्रिय सिरीयल था,

कुछ साल बाद रामायण के अलावा जय हनुमान, ॐ नमः शिवाय,जय गंगा मैया, श्री कृष्णा,अलीफ लैला, चंद्रकांता, बिक्रम बेताल, शक्तिमान, जंगल बुक, जैसे बहुत से लोकप्रिय सिरीयल डी डी वन पर दिखाये गये ,

सिरीयल के अलावा डी वन के विज्ञापन जैसे वाशिंग पाउडर निरमा , लाल दंत मंजन,अमूल दूध, वनस्पति डालडा, आदि जोर शोर पर थे ,

उस समय डी डी वन पर एक गीत आता था , "मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा,"  जो राष्ट्रीय एकता को दर्शाता था, यह गीत दूरदर्शन और भारत के सूचना मंत्रालय द्वारा जारी किया गया था,

ब्लैक एंड व्हाइट से टी बी रंगीन हो गई, लेकिन कभी कभी लगता है जैसे हमारी जिंदगी के कुछ रंग कहीं खो गये , कोमेडी सिरीयल देखकर सबका ठहाके लगा कर हंसना, इमोशनल फिल्मों में छुपछुप कर रोना , सर्द रातों में रजाई में दुबक कर गर्म चाय और करारी मूंगफली खाते हुए प्रोग्राम देखना, भारत पाकिस्तान का वन डे मैच हो या टवन्टी टवन्टी , भारत कि जीत पर सबका तालियों के साथ शोर मचाना, एक बंद कमरे में किसी उत्सव से कम नही था,

आज  कई चैनलों पर भिन्न भिन्न प्रकार के अच्छे प्रोग्राम आते है , लेकिन हम लोग इतने व्यस्त हो गए हैं कि अपने परिवार के  साथ बैठकर प्रोग्राम देखने का समय ही नही है, इस भागदौड़ भरी जिंदगी में रिश्तों के साथ दिलों में भी दूरियां बढ़ गई है, हमारे विचार, हमारी सोच,हमारा नजरिया, और हम लोग सब बदल रहे हैं,जिस तरह से ब्लैक एंड व्हाइट टी बी रंगीन हो गई उसी प्रकार से काश हम लोगों कि जिंदगी भी जीवन के उन्ह रंगों से रंग जाए जो प्रेम से बने हो और हमें एक दूसरे से जोड़ कर रखते हो, ,।   

                                धन्यवाद,,
                                 संगीता थपलियाल,,


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