नीड़ से नभ तक 26/06/25
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अभी नहीं, अभी नहीं, अभी—
तुम उड़ान युक्त हुए नहीं।
मत प्रयास करो व्यर्थ का
यही तक है आसमान अभी
अभी नहीं, अभी नहीं, अभी—
तुम उड़ान युक्त हुए नहीं।
कहां थे तुम बड़े विलम्ब से
खोजा तुम्हें पूर्ण चमन में
सुकोमल है पंख तुम्हारे
अभी समझो, मानो बात मेरी—
इसमें तुम्हारा अहित नहीं
अभी नहीं, अभी नहीं, अभी—
तुम उड़ान युक्त हुए नहीं।
पहले तुम सशक्त हो जाओ,
उड़ान युक्त सक्षम हो जाओ
अभी वक्त बहुत है उड़ान को
नील गगन देख बेचैन न बनों
डगर अभी ये आसन नहीं
अभी नहीं, अभी नहीं, अभी—
तुम उड़ान युक्त हुए नहीं।
मैं विरुद्ध नहीं इस उड़ान के
आशंकित हूं वेग उन्माद से
उन्मुक्तता अवरोध न बन जायें
व्यग्र न हो नील गगन देख
अति उत्साह अभी उचित नहीं
अभी नहीं, अभी नहीं, अभी—
तुम उड़ान युक्त हुए नहीं।
निकलो नीड़ से शनै शनै
अभ्यास करो संयमित से
हवा के रुख को पहचानों
अपने पर के कौशल सीखो,
अब तुम नन्हे विहंग नहीं,
अभी नहीं, अभी नहीं, अभी—
तुम उड़ान युक्त हुए नहीं।
चाह नहीं अब रोकूं तुमको,
आजाद गगन के पंछी हो तुम
सौंपता हूं तुम्हें इस विरासत को
खुला हुआ है विस्तीर्ण आकाश
अब मै तुम्हें रोक सकता नहीं,
जहांजी चाहे जीभर उड़ो वहीं।
© देव सिंह गढ़वाली