|| किस्मत की लकीरें ||
| भाग 2 दो |
सुबह- सुबह का समय था पक्षियों की चहचहाट के साथ- साथ पहाडों की ग्रीष्म ऋतु की शीतल पवन मन को मोह सी रही थी जी करता था कि यहीं पर बैठे रहे ! सुलोचना देवी के कुल पुरोहित ऊंची नीची पगडंडियों पर चलते- चलते सोहन को समझाने का प्रयास कर रहे थे,सोहन बेटा तुम खामखां बेकार की चिंता कर रहे हो, ,भला भाग्य पर भी किसी का जोर चला है , बेटा जो चला गया उसके साथ तो नहीं जाया जाता और तुम्हारी तो अभी उम्र ही कितनी है अरे मै कहाँ बेकार की बातों में....... |
सोहन बेटा वो खानदानी लोग है, उसके पिताजी भी पुलिस में दरोगा के पद पर नियुक्त है ! लड़की का नाम ममता है, और बी ए पास भी है! हाँ उम्र में थोड़ा ज्यादा है 27-28 के करीब की होगी परन्तु अभी अविवाहित है! पंडित जी सोहन को बाजार आतें- आतें रास्ते भर ऐसी अनेकों बातें समझाते रहे |
बाजार पहुँचते ही कन्या पक्ष वाले वहाँ पहले से ही मोजूद थे, दोनों पक्षों का आपस में आदर सत्कार के साथ चाय नाश्ते के दोरान वार्तालाप आरम्भ हुआ | आधी से अधिक बातें तो पंडित जी पहले से ही निर्धारित कर चुके थे,अगर कमी थी तो बस सोहन को देखने भर की ! वार्तालाप के दोरान पंडित जी के कथनानुसार सोहन के पास छुट्टियां सीमित होने के कारण विवाह शीघ्र ही मन्दिर में होना तय हुआ |
सुलोचना देवी को जिस बात का इंतजार था आखिर वह दिन भी आ गया घर में हर्षोल्लास का माहौल था ! सोहन और ममता का विवाह अग्नि को साक्षी मानकर पंडित जी के मंत्रोच्चारण के साथ सम्पन्न हुआ | वहाँ सभी लोग अत्यंत प्रसन्नचित्त दिखाई दे रहे थे एक मात्र सोहन को छोड़कर मनुष्य चाहे लाख जतन करे मगर क्या कभी भाग्य को पराजित कर पाया है सोहन के मन में भी ऐसे अनेकों प्रश्न ढेरा डालें थे | शायद इसका और मेरा विवाह होना निश्चित था नहीं तो सुनिता के साथ ऐसी अप्रिय घटना का होना कोई साधारण घटना तो नहीं थी |
भले इस विवाह उत्सव से सब लोग बड़े प्रसन्नचित्त थे , किन्तु सब के मन में एक ही इमारत की आकृति बनीं हुईं थी कि मोहित के प्रति ममता का व्यवहार कैसे होगा क्या वह उसे वो प्यार दुलार दे पायेगी |
शुरुवाती दिनों में तो एक वृक्ष की भाँति सब सीधे दिखाई देतें है किन्तु समय के साथ तो कुछ वृक्ष भी अपनी आकृति बदल देतें है | फिर ममता तो मानव मात्र थी ! जैसे- जैसे समय बीतता रहा, ममता के व्यवहार में नित नये परिवर्तन देखने को मिलते रहे और हो भी क्यू न इंसान जैसे-- जैसे नये समाज में घूमता- मिलता रहता है वैसे- वैसे उसके व्यवहार में परिवर्तन आता रहता है!
अब तक ममता के ब्याह को लगभग 10 मास बीत चुके थे! और अब अधिकांशतः ममता और प्रीति के मध्य गृहकार्य को लेकर नोक- झोक फिर बाद- विवाद बढने लगा ! आज स्थितियाँ पहले जैसी नहीं रहीं , आज के वैज्ञानिक युग में हवा सरकती देर नही लगती ! ममता और प्रीति के मध्य बढते कलह को , महेश ने फोन कॉल पर जानकर प्रीति को साथ ले जाने का निर्णय कर लिया |
अब मोहित पाँच वर्ष का होने वाला था वहीं ममता एक बच्चे की माँ बन चुकी थी! मोहित का नवजात शिशु से बार-बार खेलने का जी करता किन्तु ममता उसे तुरंत झिड़क देती , एक स्त्री चाहे कितनी भी गुणी क्यूँ न हो वह भले ही गरीबी में गुज़र बसर ले किन्तु एक सौतेला उसके लिए किसी कांटे से कम नहीं होता है |
मोहित के प्रति बेरुखी को लेकर कभी कभी सास बहू में भी अनबन हो जाती थी! ममता की झिड़की से मोहित दादीजी की गोद में जाकर खूब रोता, और फिर समकक्ष बच्चों के साथ गाँव भर में घुमने चले जाता ! जोकि स्वभाविक भी था बच्चे को जब घर में भर पूर्व प्रेम नहीं मिलता तो वह अन्य लोगों से घुलने मिलने लगते है |
सुलोचना देवी मोहित के प्रति एक शब्द सुनने को तैयार नहीं थी आखिर वही तो उसका कूलदीप था उसी से तो वंशवाद की आशाएं जुडी़ हुईं थी मगर ममता कहाँ मानने वाली थी आखिर उसका भी एक लडका था |
एक रोज़ अचानक सुनिता की माँ को नाती को देखने की लालसा जागी तो वह सीधे समधन जी के पास चलीं आयी ! अभी वह समधन जी के घर तक पहुँचीं भी नहीं थी कि रास्ते में मोहित को समकक्ष बच्चों के साथ धूल मिट्टी में खेलता देख जैसे आग बबुला हो गयी |
एक तो बैशाख माह की प्रचण्ड गर्मी और उसपर मोहित की दशा को देखकर , घर में आते ही सुनिता की माँ का सारा क्रोध ममता पर फूट पडा मगर ममता भी कहाँ धैर्य रखने वाली थी! और दोनों के मध्य मोहित को लेकर जैसे महाभारत सा छिड़़ गया! अनेकों तर्क-वितर्क हुए कि अचानक ममता ने सुनिता की माताश्री को मन की बात उबाल दी आपको इतनी हमदर्दी है इससे तो आप इसे अपने साथ क्यों नहीं ले जाती वहाँ खूब लिखेगा- पढेगा !
इस बात से सुनिता की माताश्री को मानों धक्का सा लगा हो वह बेबस होकर समधन जी से इस बात का जिक्र करतीं हैं ! किन्तु सुलोचना देवी न चाहते हुए भी आपकी बड़ी मेहरबानी होगी समधन जी|
सुलोचना जी की दशा उस बीमार व्यक्ति की भाँति थी जो मृत्यु से पूर्व न चाहते हुए भी अपने बच्चों को अन्य के सुपुर्द कर देता है!
जिसकी सुनिता की माँ को कदापि आशा न थी, अन्ततः वह दामाद जी की इच्छा जाहिर करने के लिए कहती है किन्तु वहाँ से भी जैसे आपको उचित लगता है |
मोहित का जाना था कि सुलोचना देवी हतोत्साहित हो गयी ! उसके नित्य भोजन में अवनति आने लगी वह अब अक्सर रात- दिन बिस्तर पर ही देखने को मिलती थी !
मोहित का जाना उसके लिए किसी विषैले किड़े के काटने से कम नहीं था ! मोहित की याद ,और ममता के अनुचित व्यवहार ने अन्ततः सुलोचना देवी के प्राण हर लिए |
सुलोचना देवी के मरणोपरांत जैसे ममता के लिए बद्री धाम के किवाड़ खुलना था उसने निशिदिन सोहन को नित्य एक ही बात के लिए बाध्य करना आरम्भ कर दिया कि मुझे भी साथ ले चलो मुझसे यहाँ अकेले नहीं रहा जायेगा और फिर छोटू ( हेमन्त) का भविष्य भी तो देखना है!
सोहन के लाख मनाने पर भी ममता टस से मस न हुई ! विवश होकर सोहन को अन्ततः माताश्री की अंत्येष्टि संसकार के पश्चात बच्चों को लेकर शहर ले जाना पढ़ा |
अपने अपने नसीब की बात है कोई लघु श्रम से भी अधिक धन अर्जित कर लेता है किंतु कोई कितना भी कर ले कम ही कम ,जहाँ पहले सोहन सिंगल शिफ्ट ( एकल बदलाव) के वेतन से ही गुजरे के साथ- साथ बचत भी कर लेता था वहीं अब खर्चों में बढोत्तरी के कारण आर्थिक तंगी जैसी समस्याएं उत्पन्न होने लगी ! विवश होकर सोहन ने पहले ओवरटाइम और फिर कभी- कभी नाईट ड्यूटी भी करना आरम्भ कर दिया |
समय का चक्र बड़ा बेरहम होता है समय के साथ तो मशीन को भी आराम और मरम्मत की जरूरत होती है! फिर यह तो मानव देह है |
अब सोहन का शरीर कमजोर और ढलान की ओर अग्रसर था ! जहाँ वह कभी पैंसो की पूर्ति हेतु सिफ्ट ,ओवरटाइम के बाद कभी- कभी नाईट ड्यूटी भी कर लिया करता था वहीं अब सिंगल सिफ्ट में भी वह थकने लगा , पर ममता को क्या उसको तो रुपयों से मतलब था! उल्टा वह सोहन को ताना देकर झिड़क ओर देती अब तुम्हारी बस की नहीं अब आप गाँव चले जाईये |
इस उम्र में जरा सी असावधानी और लापरवाही बीमारियों को न्योता देने जैसी होती है फिर सोहन का जीवन तो सदैव कष्टों और चिंताओं में ही बीता है ऊपर से अभी तक भी वह मुलाजिम ही था आराम जैसे सुखमय जीवन का तो उसे कभी अनुभव हुआ ही नहीं ।
अब के वर्ष बरसात चरम पर थी रोजमर्रा की तरह सोहन आज भी समय से घर लौट रहा था ! किन्तु अचानक बारिश से सोहन पूरी तरह से भीगते हुए घर पहँचा था ।
घर आतें ही शर्दी- जुखाम ने पैर पसार दिये और रात होतें- होतें तेज़ बुखार को भी दावतनामा मिल गया अब क्या था सोहन को जैसे खटिया से ही लगाव हो गया देखते- देखते हफ्ता कब गुजरा पता ही नहीं लगा यह तो सिर्फ सोहन को ही पता था जो तीव्र ज्वर से पीड़ित था चोट खाये देह ही जानती है कि दर्द कितना है बाकी लोगों को क्या ।
चारपाई पर लेटे- लेटे सोहन को आज धीरे-धीरे अपना जीवन वृतांत याद आने लगा कैसे माता सुलोचना ने हमें बिन बाप के भी बड़ी सहजता से पाला, कैसे देवी तुल्य अर्धांगिनी बीच मजधार में साथ छोड़ कर चलीं गयी, और कैसे मोहित,की याद आतें ही सोहन की आंखें सजल हो गई | अब तक तो मेरा लला कहीं न कहीं लग ही गया होगा अगर वे लोग होते तो......और सोचते- सोचते उसकी कब आँख लग गयी उसे पता ही नहीं लगा ...... ।
सोहन को पड़े पड़े अब तक ग्यारह दिन बीत चुके थे उसे दिखाना बहुत जरूरी हो गया था अन्यथा....! ममता ने सोहन के साथ हेमन्त को भेजकर एक सामान्य अस्पताल में दिखाने को कहा कहीं इस उम्र में........!
अगले दिन हेमन्त ने पिता सोहन को एक बेंच पर बैठाकर सामने बैठीं रिसेप्शनिस्ट से एक पर्ची दिखाते हुए मैम हमने कल यहाँ मेडिकल जांच कराईं थी और आज मेडिकल रिपोर्ट के लिए बुलाया था |
रिसेप्शनिस्ट ने भी शीघ्रता दिखाते हुए ! अरे मोहित (एक परिचर्या कर्मचारी (नर्सिंग स्टाफ) को संबोधित करते हुए पर्ची पकड़ा दी ! पर्ची में लिखा नाम पता देखकर मोहित पहले तो अजीबोगरीब सा महसूस करने लगा !
मैम अभी तो सर नहीं आये और सारी मेडिकल रिपोर्ट वह साथ ही लाते हैं वैसे मै देख लेता हूँ !
मोहित ने हेमन्त को सर मुझे लगता है कि इन पर अभी समय लग सकता है और अभी डॉक्टर साहब भी नहीं आये है ! अगर आपको कोई ओर काम हो तो निपटा कर आ सकतें है इनका ख्याल मै रख लुंगा |
और उसने सोहन को ले जाकर एक सुरक्षित जगह पर बैठा दिया ! मगर आतें- जाते नजरें उन्हीं पर जाकर टिकी रही , मोहित को यहाँ काम करते हुए ढाई वर्ष बीत गया था मगर कभी ऐसा वाकया नहीं आया कभी उसका हृदय ऐसे बैचेन नहीं हुआ ।
उसने हिम्मत करके सोहन से बात करने का निश्चय किया, और पास जाकर सर कृपया आप अपना आधार कार्ड दिजिए! सोहन ने बगैर कुछ कहें आधार कार्ड मोहित को थमा दिया, कुछ समय पश्चात सर आप की धर्मपत्नी का नाम क्या होगा???? मोहित जैसे निश्चित करने का मन बना चुका था, मगर सोहन ने हल्की और कपकपाती आवाज में मगर उसकी क्या जरूरत आ पडीं ।
मोहित सर नाम ही तो पुछा है!ममता देवी मोहित को सोहन से इतना सुनना था कि मोहित बचपन की स्मृतियों में डूब सा गया,ओर कुछ समय पश्चात सर कहीं आपकी मातश्री का नाम सुलोचना देवी तो नहीं.......
हाँ मगर आप कौन बेटा सोहन को अब यह शख्स अपना सा जान पड़ता है आखिर माँ को गुजरे तो वर्षों बीत चुके हैं फिर.....
इतने में मोहित ने अपना और सोहन का दोनों आधार कार्ड सोहन को थमा दिये, सोहन आश्चर्यचकित होकर बारी - बारी दोनों आधार कार्डों को देखता रहा और यकायक उसकी आंखें डबडबा आई ! मोहित भी तुरंत सोहन के चरणों में झुक गया ! सोहन से भी अब रहा नहीं गया उसने मोहित को गले लगा लिया ||