मन था कि गांव जाऊं ✍️
==============
बड़ा मन था कि गांव जाऊं,
वर्षों बाद वो खेत निहारूं।
जहां हमने हल जोते,फसलें काटी,
हाथ कटे तो पट्टी बांधी।
लहलहाती फसलों से मन,
प्रसून-सा खिल जाता था।
आशाएं अनियंत्रित हो जाती थीं,
सुनते हैं वो खेत मिट गए।
अब वो विकास की भेंट चढ़ गए,
उन खेतों पर सड़क बन गई।
सुनकर मन बहुत व्यथित हुआ,
जाने का विचार त्याग दिया है।
जिस मिट्टी पर पुरखे आश्रित थे,
उन मिट्टी पर अब,गाड़ियां
और लोगों की आवाजाही है।
अब वहां जाकर क्या करूं,
उस सड़क पर कैसे जाऊं।
उस मिट्टी को क्या कहूं।
मन था कि इस बार गांव जाऊं।।
© देवसिंह गढवाली