पशु नर हो या वैद्य।
कर निरंतर क्षीण देह को ,
उपजत् रोग अनेक।
बुढ़ापे में नींद न आना भी
एक पेचिदा मसला है
करवटें बदल-बदल के देखा
इस करवट नींद आ जायेगी
कम्बक्त उम्रभर के ख़याल
रातभर सताते रहे ।।
एक ख्वाब था कि
कल कुछ अच्छा होगा
इसी ख़याल में
उम्र गुजर गईं।
© देव सिंह गढ़वाली