✍️संस्कृति दानों तक
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जौंऴ संस्कृति बचाणीं छै ,
उं कखि ओरि बस्यां छीं !
स्वाचु छैं क्वी नि द्याखु मिथें ,
द्वार खुलदे द्याख हे राम ,फूल
डऴणों त् ससुरा जी अयां छीं !
आज हर्चदा तिवार बचाणों ,
दाना दैऴू- दैऴू जांणां छीं !
जौंऴ संस्कृति बचाणीं छै ,
उं कखि ओरि बस्यां छीं !
पौंछी झवरी कमरबंद त् ,
झणी कख हर्ची कुजणीं !
इगास बग्वाऴ सूखी संगरांद ,
पुरणी धरोहर तीज़ तिवार ,
अब दानों का सारा रयां छीं !
जौंऴ संस्कृति बचाणीं छै ,
उं कखि ओरि बस्यां छीं !
कब तके राला यि दाना भी ,
चूनै की कांठ्यूं का डाऴा भी !
घाम रूड़ी स्वाड़ा नयार ,
बड़ा बड़ों थें समा दींद !अब
ओरि कतगा खाला यि दाना भी
भैर करौं का भी सारा लग्यां छीं !
जौंऴ संस्कृति बचाणीं छै ,
उं कखि ओरि बस्यां छीं !!