✍️ समय

 समय ✍️20/03/2025

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सत्य असत्य के मध्य उलझकर ,

भीष्म व्यथित हैं द्यूत देखकर 

भयभीत हैं भविष्य की 

घिरी हुई अनिश्चिताओं से ,

मन अशांत है कल क्या होगा !

यथार्थ से हृदय छिदा हुआ है ,

कभी चीरहरण कभी दोषारोपण !

कभी कुटिल शकुनि कभी धूर्त दुशासन !

नारी अभिशाप से मन डरा हुआ है 

किस किसको शांत करूं ,

हर कोई कर रहे हैं हृदय भेदन् 

अब विवश हूं उस बात को लेकर 

आखिर दृढ़ होकर अधीरतावश 

         वो प्रण क्यूंकिया ||



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