23/10/24
|| नि:शब्द ||
मैं गलत और तुम सही
हर बार ये जरूरी तो नहीं
कुछ तो गलतियां की होंगीं तुमने
पर तुम हो कि मानने को तैयार नहीं
मैं गलत और तुम सही
चल हट कोई बात नहीं
कुछ समय के लिए त्याग दूं ये
बेकार का कर्कश रंज
मैं मौन हो जाता हूं ,दो से चार,
चार से अधिक शब्द बढ़ेंगे
शब्द जाल के प्रतिकार में
हम नया कलह करेंगे
क्यों कटु शब्दों के प्रस्फुटन से
मन को फिर आघात करुं,
इससे बेहतर वाणी को विराम दूं
और नि:शब्द हो जाता हूं ||
©®देववसिंह गढ़वाली