शिथिल होकर रक्त सभी
की धमनियों में जम गया या
किसी में कुछ सांस बाकी है
क्या क्षीण होकर बिखर गया
साहस सभी का या किसी में
उम्मीद की एक किरण आज भी है
सब गर्जने बाले मेघ थे या
किसी में जल बुंन्दे आज भी है
फिर गिरकर सम्भलना सीखों
सीनों में दम भरो अभी
मंजिलें निकट नहीं शेष समर
जीवन का अभी काफी है
आपत्ति राम पर भी आयीं थी।
गर्जनें मेघनाथ की भी छायी थी
पलभर की हार से ना
मन इतना उदास करो
लहरें ओर भी आयेंगी
बस लहरों का इंतजार करो
राणाप्रताप की भाँति पुनः
मन का चेतक तैयार करो
जागो- जागो- जागो
पुनः नव प्रयास करो
जीवन है ये जीवनभर
प्रयासरत बनें रहो कल
फिर सूरज नव किरणें आयेंगी
देह में नयी स्फूर्ति लायेगी
सिनों में दम भरों
जो द्वंद्व है मस्तिष्क में उसे
चाणक्य की भाँति साकार करो
जीवन नाम है सघर्ष का
सदैव सघर्षरत बनें रहो ||
©®देवसिंह गढवाली