एक नींद सुकून वाली

बचपन कि किलकारियों से गूंजता हुआ आंगन,
वो मां के पल्लू पकड़े गिरता सम्भलता हुआ बचपन,
भारी बस्तों को कांधे पर लादे,
मास्टर जी के डंडों से सुधरता हुआ बचपन,

आज दहलीज पर खड़ी जवानी को,
जिम्मेदारियों कि गठरी को ढोते हुए देखती हूं,
अनगिनत चिंताओं से माथे कि सिलबटो को,
बेहतर  से  बेहतर  कि  तलाश  में,
भटकते हुए देखती हूं ,

थक हार कर घर आता है वो,
फिर भी रातों में जागता हुआ पाती हूं,
घर कि जिम्मेदारी  निभाने वाले  को,
बचपन कि और ताक़ते हुए पाती हूं,

कितना अच्छा होता गर जवानी में भी,
मां के आंचल जैसी छांव होती,
मां  कि  गोद  में रखे  सिर पर,
नरम हाथों कि थपकियां होती,
और एक नींद सुकून वाली होती,,।
              


                    संगीता थपलियाल,,

                                 

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