किस्मत की लकीरें | kismat ki lakeeren

   किस्मत की लकीरें एक रोचक कहानी

✍🏻   सुलोचना देवी एक कर्तव्यपरायण और धैर्यवान महिला थी यही कारण था कि लघु अवस्था में ही पति के देहांत उपरांत  सलोचना देवी ने बड़े बेटे सोहन और छोटे बेटे महेश को बडे़ लाडो और सहजता से पाल- पोस कर इस लायक बना दिया कि वह कहीं भी दो रोटी आराम से खा- कमा सकते है! अब तक सुलोचना देवी बडे़ बेटे सोहन का ब्याह कर एक पोते की दादी बन चुकी थी, अब उसे चिंता थी तो एक ही बात की कि किसी तरह वह छोटे बेटे महेश को ब्याह सके तो वह श्री बद्रीनाथ जी के दर्शन करके आयेगी |
   सुलोचना देवी एक दिन बाजार से वापसी मे थी कि सामने एक पंडित जी के दर्शन हुए, सुलोचना देवी ने पंडित जी से  मन मुताबिक राग अलापना शुरू किया जैसे कि वह जान पहचान नाते रिश्तेदारों से अलापा करती थी! पंडित जी ने तुरंत एक फोटो दिखाते हुए कहा बहन जी यह कन्या कैसी रहेगी कन्या का नाम प्रीति है अच्छा खानदान है पिताजी फौज में है ! और जैसा नाम है कन्या वैसे ही गुणी भी है! आप कहो तो बात चलाऊँ अंधे को क्या चाहिए दो आंखें .सुलोचना देवी ने तुरंत हा कर दी |
  विधाता की  देन, और भाग्य का लिखा हुआ     कौन टाल सकता है मानो पंडित जी द्वारा बताई गई कन्या महेश के लिए ही जन्मी हुईं थी! बात बनते कोई विलम्ब न लगा और गर्मीयां आते आते शादी की सारी तैयारियां भी होने लगी, सुलोचना देवी ने दोनों बेटों की मदद से और अपनी सामर्थ्य अनुसार छोटे बेटे महेश के हाथ पीले कर राहत की सांस ली |
   जिस प्रकार नया वस्त्र हर किसी को प्यारा लगता है ऐसे ही सुलोचना देवी ने भी नई बहूरानी को आंखों पर बैठा दिया ! और बड़ीं बहू सुनिता की वजाय छोटी बहू प्रीति को अधिक तबज्जो देनी लगी! कारणवश सुनिता बाहरी कार्यों में अधिक दिलचस्पी लेने लगीं |
लगभग दोपहर का समय  था सुलोचना देवी पोते संग और छोटी बहूरानी घर के कामकाज में हाथ बटाने में व्यस्त थी, कि अचानक सुनिता की दो हमउम्र स्त्रियां घबराई हुईं सी आकर सुलोचना देवी के समक्ष खडी़ हो गई किन्तु किसी में  कुछ कहने का साहस  न था |

     अरे क्या हुआ तुम दोनों को कोई सांप सूंघ गया  क्या! कुछ कहती क्यों नहीं क्या हुआ मगर स्थिति अभी भी वही थी इतनें में रसोई से प्रीति भी बाहर आ गई! वह दोनों स्त्रियां प्रीति की ओर लपकी और रसोई में ले गई सुलोचना देवी को कुछ न सुझा तो बढ़ बढ़ाते हुए अरे कोई मुझे भी कुछ बताएगा बात क्या है |
अभी कुछ ही क्षण व्यतीत हुए थे कि प्रीति की रोने की आवाज ने सुलोचना जी की आशंकाएं ओर बढा दी उसे कुछ समझ नही आ रहा था, वह पोते को छोड़  बच्चे की भांति दोडने का प्रयास करतीं हैं किन्तु उम्र के अन्तिम पडाव के कारण यह कहां तक मुमकिन था! हांकते हुए अरे क्या हुआ क्यों ये रोना धोना लगा रखा है!
   प्रीति मम्मी जी ओ दीदी......... आवाज मानो गले में ही फंस गई हो अरे कौन सी दीदी और क्या हुआ?????? 
   प्रीति पुरजोर के साथ दीदी गिर गई है,
सुलोचना देवी क्या???एक क्षण के लिए वहाँ सन्नाटा सा छ ; गया ! सब मौन अवस्था में खड़े थे, चारों नारियों में से किसी में मौन भंग करने का साहस न था |
सुलोचना देवी ने ही मौन भंग करने का साहस किया कोई चोट तो नहीं.......
  एक महिला ने सिर पर गहरी चोट लगी है, बहुत सारा खून भी निकल रहा था! सुनिता बेहोशी की हालत में है |
    अभी कुछ ही समयावधि पश्चात सुनिता घर के आंगन में लायीं गई थी और गाँव वालों का जमावड़ा धीरे धीरे बढ़ रहा था! लोगों की खुसरू फुसरू ने चारों नारियों का पूर्ण रूप से मौन भंग किया और वह बाहर की ओर लपकी |

   अभी सुलोचना देवी सुनिता के पास आकर जमावड़े के कारण ठीक से देख भी नहीं पायीं थी कि एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति ने सुलोचना जी को टोकते हुए भाभी जी जरा सुनना! और भीड़ से थोड़ा सा अलग हो गया |
  भाभी जी इनको तुरंत किसी बडे़ होस्पिटल ले जाना पडेगा नहीं तो कुछ भी हो सकता है अगर आप कहों तो मैं गाड़ी वगैरह की व्यवस्था कराऊँ ! घबराई हुई सुलोचना देवी जी भाईसाहब |
कुछ ही देर में सुनिता को लेकर पौड़ी शहर की ओर रवाना किया गया जो कि गढ़वाल जिले का पहला या शहरी क्षेत्र में भी आता है |
  सुनिता के जातें ही अधिकांश लोग अपने अपने घरों की ओर निकल गए कुछ ही सीमित गणमान्य लोग वहाँ पर रह गए थे! अभी भी स्थिति इतनी नाजुक थी कि सुलोचना देवी को इस घटनाक्रम  पर विश्वास नहीं हो रहा था! वहाँ पर बेठे सारे लोग मौन स्थिति धारण किये हुए थे!
   वहाँ पर बैठे एक सज्जन ने मौन भंग किया भाभी जी आपने सोहन भाईसाहब को खबर कर दी क्या????
  अभी तो नहीं सुलोचना देवी,
उनकों फोन करके खबर कर दीजिए उनको बताना बहुत जरूरी है!
सुलोचना देवी फोन लेकर आती है और बेटा आप ही मिला दो मुझसे मशीनरी चीजों का उपयोग नहीं होता है |
  हेलो सोहन भाई नमस्कार मै दीनू बोल रहा हूँ, जी दीनू भाई राम- राम कैसे हो और कैसे याद किया, मगर यह नम्बर तो मेरे घर का है आप कैसे????
  भया ओ छोड़ों एक दुखद समाचार है भाभी जी की तबियत काफी नाजुक है ये बताओ कि आप कब तक घर पहुँच पाओगे, उधर से मगर कल श्याम को तो सबकुछ ठीक से था ऐसा क्या हुआ |
  तबियत का क्या भया बीमारी कोई पूछ कर आती है क्या, दीनू ने आधी बात छुपाते हुए बात की, और भया लीजिए आप काकी से बात कर लीजिए! और साथ-साथ वास्तविक सत्य न बताने का इसारा किया जैसे काकी के मनोभाव भाव लिए हो एक प्रकार से ठीक ही तो किया दीनू ने स्त्रियों के पेट में बात कहाँ पचती है |

सुलोचना देवी के साथ नमस्कार पाय लागू के साथ वार्तालाप शुरू हुआ पर सुलोचना देवी ने चतुराई दिखाते हुए सोहन को सन्देश देने का प्रयत्न किया !
   न उठ पा रहीं हैं ,न बैठ पा रही है, दर्द के मारे कराह रही है , तेरा ही सहरा है बेटा!  
   सुलोचना देवी ने छुपाने का जतन अच्छा किया मगर उसका वेदना पूर्ण स्वर ने सोहन को आशंकित कर दिया,माँ मै कुछ समझा नही और  तुम्हारी आवाज को क्या हुआ??
  बेटा रात भर से सोयी नहीं हूँ इसलिए मगर तुम जल्दी से जल्दी  घर पहुँचो ,और लो तुम दीनू भया से बात करो !
सोहन बाबू बडे़ आश्चर्य में थे आखिर ऐसा हुआ है, कोई साफ़- साफ़ क्यों नहीं बता रहा है ! जेंसे तेंसे सोहन ने छुट्टी की अर्जी लगाईं और श्याम की बस पकडकर गाँव की ओर निकल दिया! इस बीच माँ से उसकी दो एक बार बात ओर हुई मगर खुलकर कुछ नहीं कहा आवाज में दिल चीर देने वाला दर्द सम्मिलित जरूर था,जिससे उसकी आशंकाए पल - पल बढती जा रहीं थी! और वह चाह रहा था कि पंख लगाकर शीघ्र अतिशीघ्र घर पहुँच जाऊँ! मगर समय तो अपनी गति से चलता है  किसी के चाहने न चाहने से क्या होता है |
    सोहन को भी गाँव पहुचते- पहुचते सुबह के सात 07 बज चुके थे !  लोग सोहन को बड़ी आशापूर्णा निगाहों से निहार रहे थे, अच्छा किया बेटा समय से पहुँच गया, महेश नहीं आया क्या?? इसी प्रकार के सवालों को सुनते- सुनते जैसे कैसे सोहन का अपने घर तक पहुचना था कि सास बहू की विलाप  ध्वनि ने सोहन को चौंकाने पर मजबूर कर दिया |
  सोहन कुछ कहता इससे पूर्व सुलोचना देवी स्वयं ही बोल पडीं बेटा मुझे माफ करना मै सुनिता का ख्याल नही रख पायीं,  सोहन प्रश्नवाचक नजरों से मतलब मुझे कुछ समझ नही आ रहा है माजी पूरी बात बताइये |
   सुलोचना देवी आंखों से आये आंसू पोछते- पोछते दरअसल बेटा बड़ी बहू घास के लिए गईं हुईं थी और बर्षा ऋतु के कारण उसका पैर फिसल गया फिर न पुछो! यहाँ के क्षेत्र से तू बखूबी जानकार है! इतना सुनना था कि सोहन  के हृदय में जैसे कोई शूल गढ़ गया हो |
  सुलोचना देवी को ऐसे प्रतीत हो रहा था जैसे वह वर्षों पुराना बोझा ढोककर आयी हो ! सोहन ने धीमी आवाज में कहा अभी कहाँ है वो ,सुलोचना देवी कल दोपहर को पौड़ी ले गए थे लेकिन वहाँ के डॉक्टरों ने लेने से मना कर दिया उसे लेकर देहरादून गए है ! तेरे मोहन चाचा भी साथ में है |
   सोहन बिना कुछ कहें उठा और सड़क की ओर चल दिया!  सोहन के हृदय में तो आग लगी थी! उसने मोहन काका से फोन पर सुनिता का हालचाल , अस्पताल का नाम पता जान चुका था बस चिंता थी कि किसी तरह सुनिता को देख ले |
    जैसे ही वह होस्पिटल पहुचा उसे सुनिता को देखना चाह ! सुनिता ICU(सघन परिचर्या एकक) में होने के कारण  डॉक्टरों द्वारा उससे मिलने से मना किया गया था |

    दोपहर बाद छोटा भाई महेश भी आ गया दुखद में अपनो का सहारा किसी मरहम से कम नहीं होता , शरीर की चोट को शरीर का दुसरा अंग ही महसूस कर सकता है दुसरे मानस को क्या!
  देखते-देखते दो भाईयों के मध्य बातचीत में कब शाम ढलने को आई पता ही नहीं लगा अब उन्होंने पुनः डॉक्टर से सुनिता का हाल पुछा तो  होस्पिटल स्टाफ ने इतमिनान रखने को बाध्य कर दिया ! अब तक आधैं से अधिक लोग वापस जा चुके थे गिने -चुने दो भाई, मोहन काका और एक आधा गणमान्य लोग ही वहाँ रह गए थे |
   सुबह अल्ट्रासाउंड के बाद  महेश, मोहन काका,और सोहन को पता लगता है कि सुनिता को अनेकों चोटों के साथ रीढ़ की हड्डी भी फ्रैक्चर हुईं है! डॉक्टरों द्वारा अनेकों प्रकार की दिलासा दी गयी !
  दिन गुजरने लगे सुनिता की हालत बद् से बदतर हो रही थी दर्द तो मनो रुकने का नाम नहीं ले रहा था दर्द निवारण दवाईयों से काम चलाया जा रहा था | अब तक महेश और मोहन काका भी अपना-अपना पल्ला झाड़ कर जा चुके थे  |
दिन प्रतिदिन सोहन की भी जमापूंजी खाली हो रही थी निजी अस्पतालों का क्या जब तक जेब में माल है तब तक मरीज में जान है अन्यथा ये लोग तो मुरदे को भी जीवित घोषित करने में कोई कम कसर नहीं छोड़ते  हैं |
  सोहन की आर्थिक स्थिति ने सुनिता को निजी होस्पिटल से सरकारी अस्पताल में धकेलने के लिए बेबस कर दिया! जहाँ उसका  इलाज निजी होस्पिटल में ठीक से नहीं हो पा रहा था वहाँ सरकारी अस्पताल में कहाँ तक मुमकिन था यहाँ तो लोग पहले से ही लापरवाह और  निखट्टू भरे रहते हैं कोई मरे तो मरे उनकों क्या |
    जहाँ पहले सुनिता को अन्य दवाईयों के साथ दर्द निवारण गोलियां दी जाती थी वहाँ अब इन गोलियां की भी कमी की जाने लगी! सुनिता का दर्द मानों अब सातवें आसमान पर था, ऐसा जान पड़ता था कि वह ईश्वर से मृत्यु के सिवाय कुछ नहीं चाहती!

  अन्ततः एक रोज़ तीन महीने की बिस्तर पर लम्बी तपस्या के पश्चात सुनिता को मोक्ष प्राप्ति हुई ! उसने जाते - जाते सोहन का हाथ दबाकर मोहि, मोहि मोहित का ख्याल रखना कहकर प्राण त्याग दिये दोनों के मुख अश्रु धाराओं से मलिन थे कुछ ही देर पश्चात  अस्पताल वालों ने भी सोहन को सुनिता का मृतक शरीर सौंप दिया था!
  आखिरकार सोहन ने जैसे कैसे सुनिता के शव को हरिद्वार पहुचाकर तीन पंडितों द्वारा अंत्येष्टि संसकारो के उपरांत अब निराश होकर गाँव लौट आया
   सुलोचना देवी अक्सर सोहन के उदासीनता और निराश व्यवहार से परेशान रहतीं थी और अपने आप को कौसती रहतीं थी आखिर क्यों मैंने दोनों बहुओं में भेदभाव किया |
   समय तो अपनी गति का पाबंद है दुख हो या सुख, निशा दिन कटते सोहन को अब गाँव में महिना बीत गया था परन्तु उसके व्यवहार में कुछ खास परिवर्तन नहीं हुआ था हाँ कुछ लोग उसे यह समझाने का प्रयास अवश्य कर रहे थे कि बेटा जाने वाला तो चला गया क्या उम्र भर उसके लिए माथा पकड़ के रखेगा ,तेरे पीछे ओ नन्ही सी जान भी तो है अपने लिए नहीं तो उसी के लिए कुछ सोच ले, कोई कहता बेटा मेरी मान तू पुनः व्याह कर ले!अब सोहन को इस प्रकार की सलाह देने वालों की कोई कमी नहीं थी! घर गाँव बाजार नाते रिश्तेदार सभी एक ही पहाड़ा रट रहे थे कि पुनः शादी कर ले |
   वक्त गुजरता रहा सोहन एक मर्तबा पुनः दिल्ली आकर एक नई कम्पनी में अपने तजुर्बा अनुसार नौकरी पर लग  गया ! वह समय के साथ ढलने का पूरा प्रयास करता रहा मगर सुनिता की यादें तो मानों उसके हृदय में घर किये हुए थी |
    अब सोहन पहले जैसे नित्य शाम को घर में फोन भी नहीं करता था! कभी मोहित के लिए हफ्ते भर में एक अदा बार या माँ के फोन को शाम को उठा लिया करता था ! देखते- देखते हंसते रोते वर्षभर बीत चुका था |
   एक दिन शाम को घर के फोन पर मोहित कि तोतली आवाज ने यकायक सोहन को जैसे मोहित को देखने के लिए विवश कर दिया |
  अब तो मेरा लला लगभग ढाई वर्ष का हो गया होगा काश उसकी माँ होती तो...... और वह फूट- फूटकर रोने लगा काफी देर बाद जब उसका मन हल्का हुआ तो उसका घर जाकर मोहित को देखने का मन किया! और गाँव जाने का फैसला किया |
    अगले दिन ऑफिस जाकर उसने छुट्टी की अर्जी लगाईं और साथ-साथ समय निकाल कर घर के लिए खरीदारी में व्यस्त रहने लगा जिसमें मोहित के लिए विशेष स्थान था! घर आकर खरीदा हुआ समान देखकर उसे रह - रहकर सुनिता की याद आ जाती, और वह कुछ पलों के लिए उदास हो जाता यहाँ तक की आंसू भी निकल आते |

   आखिरकार वह दिन भी आ गया जिस दिन उसे गाँव जाना था सोहन के मन में आज मोहित को लेकर अनेकों अपेक्षाएँ जन्म ले रहीं थी क्या मोहित मुझे पहचान पायेगा! कितना बड़ा हुआ होगा वो ! इस प्रकार के अनगिनत विचारों से घिरा सोहन बस की प्रतीक्षा में भीड़ के मध्य खड़ा कभी मुबाइल फोन पर समय देखता और कभी अपने सामान को , आज एक बार पुनः उसका घर जाने की बैचेनी पहले की भाँति पल - पल  बढती जा रही थी!
  अनेकों अपेक्षाओं, जिज्ञासाओं के साथ जब वह गाँव पहुँचा तो माँ सुलोचना देवी जैसे पहले से ही उसकी राह देख रहीं थी!
  नमस्ते पाय लागू पश्चात् दादी के समक्ष बेठे मोहित को सोहन ने  बुलाना चाह पर मोहित तो उसे ऐसे देख रहा था जैसे आंगन में बन्दा जानवर नये मालिक को देखता है |
  सोहन ने मोहित को अनेकों उपहार से लुभाया परन्तु मोहित आता और उपहार लेकर दादीजी की गोदी में जाकर छिप सा जाता !  सुलोचना देवी सोहन के मनोभाव ताड़ चुकि थी सोहन से संकोच बस बोली चिंता मत कर बेटा एक दो दिन में खुद ही आने लगेगा काफी दिनों बाद देख रहा है न तो हिचकिचाह रहा है |
   सोहन ने मोहित को लुभाने की अनेकों चेष्टाएँ की मगर सब बेकार,अगर दादी किसी कारणवश अन्दर जाती तो मोहित दादीजी का पल्लू पकड़ कर अन्दर चला जाता, और दादी बाहर तो मोहित भी.... मोहित,सोहन को दूर- दूर से ही टुकर-टुकर देखा जा रहा था! वैसे भी बच्चों पर  पुरुष मोह की अपेक्षा स्त्री मोह अधिक  प्रभावशाली होता है! यकायक सोहन को सुनिता की यादों ने घेर लिया यदि वह होती तो मेरे समक्ष बैठती तब तो मोहित स्वत; ही.........
   अब तक सोहन को आये हुए दो दिन हो चुकें थे और वह  मौन स्थिति में बेठा यही सोच रहा था कि सुलोचना देवी ने सोहन का  ध्यान भंग किया ! बेटा पिछले हफ्ते पंडित जी आये थे यहाँ तेरे विषय में पुच्छ रहे थे! कहाँ है!
  क्यूँ उनको मुझसे ऐसा कौन सा काम आ पड़ा जो मुझे........ सोहन ने बेमन से कहा जैसे वह सबकुछ जानता हो!
   ओ दरअसल तेरे ब्याह के लिए सुलोचना देवी ने झिझकते हुए अपनी बात रखने का प्रयास किया
!
   माँ तुम भी वही राग अलापने लगी जिसे..... क्या आप नहीं जानती कि मै मोहि के भविष्य के साथ मै कोई खिलवाड़ नही करना चाहता! और फिर नाजाने घर में कैसी मूर्त आयेगी भगवान न जाने मोहि को वो प्यार मिले न मिले !

   सुलोचना देवी बढ़े इतमिनान से , बेटा जब लड़की पहली दफा भोजन बनातीं है,अगर वह भी यही भ्रम पाल ले कि इस भोजन को कोई खाएगा या नहीं खाएगा तो शायद वह  जीवन पर्यंत भोजन बनाने में अभ्यस्त हो ही नहीं पायेगी ! 

     तू तो ज्यादातर बाहर ही रहता है इसकी देखभाल के लिए भी तो कोई चाहिए मेरा क्या जीवन के अन्तिम पड़ाव पर हूँ ! सुलोचना देवी के आंखों में आंसू झलक आये थे |
    सोहन अब निशब्द सा रह गया उसके पास इस बात का कोई वितर्क नहीं थाथा |
  एक बात ओर महेश का फोन आया था वह बहू को साथ लेजाने के लिए भी कह रहा था, शायद अब की छुट्टी मे . ........ |
  अब सोहन बेबस सा हो गया था बड़ी असमंजस की स्थिति में था कि क्या करे क्या न करें! उसे कुछ समझ नही आ रहा था! जैसे सुलोचना देवी आज उसके पीछे हाथ धोकर मनाने के लिए अडिग थी |
   जैसी आप लोगो की मर्जी सोहन के मुहं से अनायास ही निकल पडा़ ,अंधे को क्या चाहिए दो आँखे  सुलोचना देवी हर्षित भाव से कल पंडित के साथ बाजार चले जाना, और अच्छी तरह से देख कर सुनिश्चित कर लेना वैसे तो अच्छा, बुरा, किसी के माथे पर नहीं लिखा होता मगर फिर भी मन तसल्ली भी कोई चीज होती है |
   ओहो तो सारी खिचड़ी पहले से ही पकी पकाई रखीं थीं सिर्फ परोसने की कसर बाकी थी ! सुलोचना देवी कुछ न बोली और वहाँ से उठकर चलीं गयी! वह अब गली हुईं दाल खराब नहीं करना चाहती थी!

              || किस्मत की लकीरें ||

                      | भाग 2 दो |

       सुबह- सुबह का समय था पक्षियों की चहचहाट के साथ- साथ  पहाडों की ग्रीष्म ऋतु की शीतल पवन  मन को मोह सी रही थी जी करता था कि यहीं पर बैठे रहे ! सुलोचना देवी के कुल पुरोहित ऊंची नीची  पगडंडियों पर चलते- चलते सोहन को समझाने का प्रयास कर रहे थे,सोहन बेटा तुम खामखां बेकार की चिंता कर रहे हो, ,भला भाग्य पर भी किसी का जोर चला है , बेटा जो चला गया उसके साथ तो नहीं जाया जाता और तुम्हारी तो अभी उम्र ही कितनी है अरे मै कहाँ बेकार की बातों में....... |

  सोहन बेटा वो खानदानी लोग है, उसके पिताजी भी पुलिस में दरोगा के पद पर नियुक्त है ! लड़की का नाम ममता है, और बी ए पास भी है! हाँ उम्र में थोड़ा ज्यादा है 27-28 के करीब की होगी परन्तु अभी अविवाहित है!  पंडित जी सोहन को बाजार आतें- आतें रास्ते भर ऐसी अनेकों बातें समझाते रहे |
     बाजार पहुँचते ही कन्या पक्ष  वाले वहाँ पहले से ही मोजूद थे, दोनों पक्षों का आपस में आदर सत्कार के साथ चाय नाश्ते के दोरान वार्तालाप आरम्भ हुआ | आधी से अधिक बातें तो पंडित जी पहले से ही निर्धारित कर चुके थे,अगर कमी थी तो बस सोहन को देखने भर की ! वार्तालाप के दोरान पंडित जी के कथनानुसार सोहन के पास छुट्टियां सीमित होने के कारण विवाह शीघ्र ही मन्दिर में होना तय हुआ |
    सुलोचना देवी को जिस बात का इंतजार था आखिर वह दिन भी आ गया घर में हर्षोल्लास का माहौल था ! सोहन और ममता का विवाह अग्नि को साक्षी मानकर पंडित जी के मंत्रोच्चारण के साथ सम्पन्न हुआ | वहाँ सभी लोग अत्यंत प्रसन्नचित्त दिखाई दे रहे थे एक मात्र सोहन को छोड़कर मनुष्य चाहे लाख जतन करे मगर क्या कभी भाग्य को  पराजित कर पाया है सोहन के मन में भी ऐसे अनेकों प्रश्न ढेरा डालें थे | शायद इसका और मेरा विवाह होना निश्चित था नहीं तो सुनिता के साथ ऐसी अप्रिय घटना का होना कोई साधारण घटना तो नहीं थी |
  भले इस विवाह उत्सव से सब लोग बड़े प्रसन्नचित्त थे , किन्तु सब के मन में एक ही इमारत की आकृति बनीं हुईं थी कि   मोहित के प्रति ममता का व्यवहार कैसे होगा क्या वह उसे वो प्यार दुलार दे पायेगी |

   शुरुवाती दिनों में तो एक वृक्ष की भाँति  सब सीधे दिखाई देतें है किन्तु समय के साथ तो कुछ वृक्ष भी अपनी आकृति बदल देतें है | फिर ममता तो मानव मात्र थी ! जैसे- जैसे समय बीतता रहा, ममता के व्यवहार में नित नये परिवर्तन देखने को मिलते रहे और हो भी क्यू न इंसान जैसे-- जैसे नये समाज में घूमता- मिलता रहता है वैसे- वैसे उसके  व्यवहार में परिवर्तन आता रहता है!
     अब तक ममता के ब्याह को लगभग 10 मास बीत चुके थे! और अब अधिकांशतः ममता और प्रीति के मध्य गृहकार्य को लेकर  नोक- झोक फिर बाद- विवाद  बढने लगा ! आज स्थितियाँ पहले जैसी नहीं रहीं , आज के वैज्ञानिक युग में हवा सरकती देर नही लगती ! ममता और प्रीति के मध्य बढते कलह को , महेश ने  फोन कॉल पर जानकर  प्रीति को साथ ले जाने का निर्णय कर लिया |
   अब  मोहित पाँच वर्ष का होने वाला था वहीं ममता एक बच्चे की माँ बन चुकी थी! मोहित का नवजात शिशु से बार-बार  खेलने का जी करता किन्तु ममता उसे तुरंत झिड़क देती , एक स्त्री चाहे कितनी भी गुणी क्यूँ न हो वह भले ही गरीबी में गुज़र बसर ले किन्तु एक  सौतेला उसके लिए किसी कांटे से कम नहीं होता है | 
मोहित के प्रति बेरुखी को लेकर कभी कभी सास बहू में भी अनबन हो जाती थी! ममता की झिड़की से मोहित  दादीजी की गोद में जाकर खूब रोता, और फिर समकक्ष बच्चों के साथ गाँव भर में घुमने चले जाता ! जोकि स्वभाविक भी था बच्चे को जब घर में भर पूर्व प्रेम नहीं मिलता तो वह अन्य लोगों से घुलने मिलने लगते है |   
      सुलोचना देवी मोहित के प्रति एक शब्द सुनने को तैयार नहीं थी आखिर वही तो उसका कूलदीप था उसी से तो वंशवाद की आशाएं जुडी़ हुईं थी  मगर ममता कहाँ मानने वाली थी आखिर उसका भी एक लडका था |

   एक रोज़ अचानक सुनिता की माँ को नाती को देखने की लालसा जागी तो वह सीधे समधन जी के पास चलीं आयी ! अभी वह समधन जी के घर तक पहुँचीं भी नहीं थी कि रास्ते में मोहित को समकक्ष बच्चों के साथ धूल मिट्टी में खेलता देख जैसे आग बबुला हो गयी |
    एक तो बैशाख माह की प्रचण्ड गर्मी और उसपर  मोहित की दशा को  देखकर , घर में आते ही  सुनिता की माँ का सारा क्रोध ममता पर फूट पडा मगर ममता भी कहाँ धैर्य रखने वाली थी! और दोनों के मध्य मोहित को लेकर जैसे  महाभारत सा छिड़़ गया! अनेकों तर्क-वितर्क हुए कि अचानक ममता ने सुनिता की माताश्री को मन की बात उबाल दी  आपको  इतनी हमदर्दी है इससे तो आप इसे अपने साथ क्यों नहीं ले जाती वहाँ खूब लिखेगा- पढेगा !
      इस बात से सुनिता की माताश्री को मानों धक्का सा लगा हो वह बेबस होकर समधन जी से इस बात का जिक्र करतीं हैं ! 
किन्तु सुलोचना देवी न चाहते हुए भी आपकी बड़ी मेहरबानी होगी  समधन जी|

    सुलोचना जी की दशा उस बीमार व्यक्ति की भाँति थी जो मृत्यु से पूर्व न चाहते हुए भी अपने बच्चों को अन्य के सुपुर्द कर देता है!

   जिसकी सुनिता की माँ को कदापि आशा न थी, अन्ततः वह दामाद जी की इच्छा जाहिर करने के लिए कहती है किन्तु वहाँ से भी जैसे आपको उचित लगता है |

  मोहित का जाना था कि सुलोचना देवी हतोत्साहित हो गयी ! उसके नित्य भोजन में अवनति आने लगी  वह अब अक्सर रात- दिन   बिस्तर पर ही देखने को मिलती थी ! 

    मोहित का जाना उसके लिए किसी विषैले किड़े के काटने से कम नहीं था ! मोहित की याद ,और ममता के अनुचित व्यवहार ने अन्ततः सुलोचना देवी के प्राण हर लिए |

  सुलोचना देवी के मरणोपरांत जैसे ममता के लिए बद्री धाम के किवाड़ खुलना था  उसने निशिदिन सोहन को नित्य एक ही बात के लिए बाध्य करना आरम्भ कर दिया कि मुझे भी साथ ले चलो मुझसे यहाँ अकेले नहीं रहा जायेगा और फिर छोटू ( हेमन्त) का भविष्य भी तो देखना है!      
        सोहन के लाख मनाने पर भी ममता टस से मस न हुई  ! विवश होकर सोहन को अन्ततः माताश्री की अंत्येष्टि संसकार के पश्चात बच्चों को लेकर शहर ले जाना  पढ़ा  |

  अपने अपने नसीब की बात है कोई लघु श्रम से भी अधिक धन अर्जित कर लेता है किंतु कोई कितना भी कर ले कम ही कम ,जहाँ पहले सोहन सिंगल शिफ्ट ( एकल बदलाव) के वेतन से ही  गुजरे  के साथ- साथ बचत भी कर लेता था वहीं अब खर्चों में बढोत्तरी के कारण  आर्थिक तंगी  जैसी समस्याएं उत्पन्न होने लगी ! विवश होकर सोहन ने पहले  ओवरटाइम और फिर कभी- कभी नाईट ड्यूटी भी करना आरम्भ कर दिया  |
   समय का चक्र बड़ा बेरहम होता है समय के साथ तो मशीन को भी आराम और मरम्मत की जरूरत होती है! फिर यह तो मानव देह है |
  अब सोहन का शरीर कमजोर और ढलान की ओर अग्रसर था ! जहाँ वह कभी पैंसो की पूर्ति हेतु  सिफ्ट ,ओवरटाइम के बाद कभी- कभी नाईट ड्यूटी भी कर लिया करता था वहीं अब सिंगल सिफ्ट में भी वह थकने लगा , पर ममता को क्या उसको तो रुपयों से मतलब था! उल्टा वह सोहन को ताना देकर झिड़क ओर देती अब तुम्हारी बस की नहीं अब आप गाँव चले जाईये |
   इस उम्र में जरा सी असावधानी और लापरवाही  बीमारियों को न्योता देने जैसी होती है फिर सोहन का जीवन तो सदैव कष्टों और चिंताओं में ही बीता है ऊपर से अभी तक भी वह मुलाजिम ही था आराम जैसे सुखमय जीवन का तो उसे अनुभव हुआ ही नहीं था| |
  अब के वर्ष बरसात चरम पर थी रोजमर्रा की तरह सोहन आज भी समय से घर लौट रहा था ! किन्तु अचानक बारिश में सोहन पूरी तरह से भीगते हुए घर पहँचा था |

  घर आतें ही शर्दी- जुखाम ने पैर पसार दिये और रात होतें- होतें तेज़ बुखार को भी दावत नामा मिल गया अब क्या था सोहन को जैसे खटिया से ही लगाव हो गया देखते- देखते हफ्ता कब गुजरा पता ही नहीं लगा यह तो सिर्फ सोहन को ही पता था जो तीव्र ज्वर से पीड़ित था चोट खाये देह ही जानती है कि पीड़ा क्या होती है बाकी लोगों का क्या  |
      चारपाई पर लेटे- लेटे सोहन को आज धीरे-  धीरे अपना जीवन वृतांत याद आने लगा कैसे माता सुलोचना ने हमें बिन बाप के भी बड़ी सहजता से पाला, कैसे देवी तुल्य अर्धांगिनी  बीच मजधार में साथ छोड़ कर चलीं गयी, और कैसे मोहित,की याद आतें ही सोहन की आंखें सजल हो गई | अब तक तो मेरा लला कहीं न कहीं तो लग ही गया होगा अगर वे लोग होते तो......और सोचते- सोचते उसकी कब आँख लग गयी उसे पता ही नहीं लगा ...... |
   सोहन को पड़े पड़े अब तक ग्यारह दिन बीत चुके थे  उसे  दिखाना बहुत जरूरी हो गया था अन्यथा....! ममता ने सोहन के साथ हेमन्त को भेजकर एक सामान्य अस्पताल में दिखाने को कहा कहीं इस उम्र में........!
      अगले दिन हेमन्त ने पिता सोहन को एक बेंच पर बैठाकर सामने बैठीं रिसेप्शनिस्ट से एक पर्ची दिखाते हुए मैम हमने कल यहाँ मेडिकल जांच कराईं थी और आज मेडिकल रिपोर्ट  के लिए बुलाया था |
   रिसेप्शनिस्ट ने भी शीघ्रता दिखाते हुए ! अरे मोहित (एक परिचर्या कर्मचारी (नर्सिंग स्टाफ) को संबोधित करते हुए पर्ची पकड़ा दी ! पर्ची में लिखा नाम पता  देखकर मोहित पहले तो  अजीबोगरीब सा महसूस करने लगा !
   मैम अभी तो सर नहीं आये और सारी मेडिकल रिपोर्ट वह साथ ही लाते हैं वैसे मै देख लेता हूँ !
  मोहित ने हेमन्त को सर मुझे लगता है कि इन पर अभी समय लग सकता है और अभी    डॉक्टर साहब भी नहीं आये है तो अगर आपको कोई ओर काम हो तो निपटा कर आ सकतें है इनका ख्याल मै रख लुंगा |
   और उसने सोहन को ले जाकर एक सुरक्षित जगह पर बैठा दिया ! मगर आतें- जाते नजरें उन्हीं पर जाकर टिकी रही , मोहित को यहाँ काम करते हुए ढाई वर्ष बीत गया था मगर कभी ऐसा वाकया नहीं आया कभी उसका हृदय ऐसे बैचेन नहीं हुआ |
  उसने  हिम्मत करके सोहन से  बात करने का निश्चय किया, और पास जाकर सर कृपया आप अपना आधार कार्ड दिजिए! सोहन ने बगैर कुछ कहें आधार कार्ड मोहित को थमा दिया, कुछ समय पश्चात सर आप की धर्मपत्नी का नाम क्या होगा???? मोहित जैसे निश्चित करने का मन बना चुका था, मगर सोहन ने हल्की और कपकपाती आवाज में मगर उसकी क्या जरूरत आ पडीं |
       मोहित सर नाम ही तो पुछा है!ममता देवी मोहित को सोहन से इतना सुनना था कि मोहित बचपन की स्मृतियों में डूब सा गया,ओर कुछ समय पश्चात सर कहीं आपकी मातश्री का नाम सुलोचना देवी तो नहीं.......
    हाँ मगर आप कौन बेटा सोहन को अब यह शख्स अपना सा जान पड़ता है आखिर माँ को गुजरे तो वर्षों बीत चुके हैं फिर.....
   इतने में मोहित ने अपना और सोहन का दोनों आधार कार्ड सोहन को थमा दिये, सोहन आश्चर्यचकित होकर बारी - बारी दोनों आधार कार्डों को देखता रहा और यकायक उसकी आंखें डबडबा आई !  मोहित  भी तुरंत सोहन के चरणों में झुक गया !  सोहन से भी अब रहा नहीं गया  उसने मोहित को गले लगा लिया ||
  

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  |` आपका प्रियवर अतुल शैली||

 


   
 

 

   

   

   

  

   

  

    

  

     

  

   
         

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