वैष्णो देवी यात्रा,

६ नवम्बर २०२२ - सुबह के ७.०० बजे हम देवरानी, जेठानी, सासू जी, और हमारी तीनों ननदें दिल्ली कश्मीरी गेट बस अड्डे से जम्मू के लिए रवाना हुए,

दिल्ली से करनाल हल्की सी धुंध की चादर में लाल चमकता हुआ सूरज हमें देख मुस्कुरा रहा था और सुबह कि ताजी ठंडी हवा मेरे गालों को छू कर मेरे साथ साथ चल रही थी,

चौड़ी चौड़ी सड़कों पर दर्जनों गाड़ियां जिनके साथ हम भी अपनी मंजिल कि और बढ़ रहे थे, और गाड़ी कि तेज रफ़्तार कई शहरों को पीछे छोड़ आई थी लेकिन अंबाला तक कोहरे ने हमारा साथ नही छोड़ा,

पीछे कि सीट पर ननदें अपनी छोटी भाभी के साथ पुराने किस्सों को याद करते हुए हंसी मजाक में जोर जोर से हंसते और मै आगे कि सीट पर बैठ कर मुस्कुराते हुए यही सोच रही थी,कि हम महिलाऐं छोटी छोटी खुशियों को कितनी सरलता के साथ बड़ी बड़ी खुशीयों में बदलने का हुनर रखते हैं, और घर कि चारदीवारी में भी खुश रहकर अपने परिवार का ख्याल रख लेती है, आज घर कि सारी महिलाएं बहुत खुश थी,

करीब शाम के ७.०० बजे दिन भर कि हल्की धूप रहने के बाद हम लोग जम्मू पहुंचे और हमने जम्मू से कटरा तक जाने वाली   A.C  बस  में आगे का सफर किया, घर कि ज्यादातर महिलाएं पहली बार A.C बस से सफर कर रही थी इसलिए उल्टी के डर से अंदर की सीटों पर ना बैठ कर बाहर बस चालक के नजदीक वाली सीटों पर जा बैठी और भजन कीर्तन करने लगी ,जब भी भीड़ कि वजह से बस रूकती वहां वहां पर बस चालक हम लोगों के कीर्तन 
में बैठे बैठे नाचने लगा,

करीब दो घंटे बाद हम कटरा पहुंचे और होटल जाकर विश्राम किया ।।

७ नवम्बर २०२२ - रात के करीब एक बजे से बारिश शुरू हो गई थी, सुबह के १०.३० बजे तक हमने बारिश रुकने का इंतजार किया लेकिन बारिश रुकने का नाम नही ले रही थी अब हमने भी बारीश में ही होटल से बाहर निकलने का निर्णय लिया, हल्का सा नाश्ता करने के बाद हमने ताराकोट पैदल मार्ग यात्रा आरंभ कर दी,

वैष्णो देवी कि यात्रा अधिकतर लोग बाणगंगा नदी में स्नान करके बाणगंगा पैदल मार्ग से मां के चरण पादुका के दर्शन करके सांझी छत में गुफ़ा से गुजरने के बाद अर्धकुंवारी में माता के दर्शन कर के आगे मां के भवन जाते हैं,

लेकिन बाणगंगा पैदल मार्ग पर खच्चरों कि भारी भीड़ और खड़ी चढ़ाई से लोगों को बहुत परेशानी का सामना करना पड़ता है,

अपनी यात्रा को सुगम और सुखद बनाने के लिए हमने ताराकोट पैदल मार्ग से ही यात्रा करने का निर्णय लिया,

यात्रा करते समय हम लोग बहुत खुश थे और मां का जयकारा करते हुए आगे बढ़ रहे थे, यात्रा को सुखद बनाने में मेरी ननदों का बढ़ा हाथ था, हम लोग माता के भजन कीर्तन तो कभी हंसी मजाक के साथ आगे बढ़ रहे थे, एक जगह पर ढोल वाले ढोल बजा रहे थे और हम लोग ढोल की तान पर खूब नाचे, माता के दर्शन करने कि खुशी तन और मन में एक सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न कर रही थी और साथ ही हल्की बारिश मौसम में चार चांद लगा रही थी,

कुछ देर बाद बारिश तेज हो गई और ठंडी हवाओं से हमें ठिठुरना पड़ा , करीब दोपहर २.३० बजे बारिश बंद हो गई और हमारा सफर आगे बढ़ने लगा,

वैष्णो देवी साइन बोर्ड वालों ने एक जगह पर लंगर लगाया था जिसका हमने भी लाभ उठाया, इसके अतिरिक्त जगह जगह पर पानी , शौचालय, दवाईयां, और एम्बुलेंस सेवा कि व्यवस्था कर रखी थी, लगभग कटरा से नौ किलोमीटर कि दूरी तय करने के बाद हम लोग थकने लगे थे, धीरे धीरे हम लोग शाम ७.०० बजे मां के भवन पहुंचे, वहां बहुत लंबी लाइन लगी हुई थी, लगभग चार घंटे तक नंगे पांव लाइन पर खड़े होकर हमने माता के दर्शन करे,

सुबह बारिश होने से बहुत ठंडी हवाएं चल रही थी, तो हमने हम जल्द से जल्द कटरा पहुंचने का निर्णय लिया,रात के करीब ११.०० बजे हमने भोजन किया और मजबूरन भैरव नाथ मंदिर के दर्शन के बिना ही हम भवन से नीचे उतरने लगे,

इतनी दूर आये थे तो सांझी छत जा पहुंचे, खुले आसमान के नीचे मंदिर के बड़े से प्रांगण में लोग कम्बल में दुबक कर गुफ़ा में जाने का इंतजार कर रहे थे, कुछ समय के बाद हम भी गुफा में प्रवेश करने लगे, मेरे मन में अपने बढ़ते वजन को लेकर शंका थी कहीं मैं फंस ना जाऊं, मेरे मन कि शंका वास्तविकता में बदल गई जब गुफ़ा के अंतिम हिस्से में मै फंस गई, फिर जैसे तैसे करके मैं गुफा से बाहर निकली ,

मां अर्धकुंवारी के दर्शन करके हमने मां के चरण पादुका कि और प्रस्थान किया, अर्धकुंवारी से नीचे उतरते ही बाजार शुरू हो गया था, पूजा पाठ से लेकर खाने पीने का सामान, छोटे छोटे होटल, अखरोट और बादाम कि दुकानें बांणगंगा तक फैले हुए थे , पैदल मार्ग लोगों से ज्यादा खच्चरों से भरा हुआ था,जो आने जाने वाले लोगों के लिए रूकावटें पैदा कर रहे थे ,

८ नवम्बर २०२२  कि सुबह के सात बज चुके थे हम बुरी तरह से थक चुके थे इसलिए जल्दी होटल पहुंच कर आराम करना चाहते थे, कुछ देर विश्राम करने के बाद हमने १.३० बजे दोपहर कटरा से दिल्ली के लिए बस पकड़ी , और कुछ यादगार पलों को अपनी आंखों में समेट कर छुपते हुए सूरज को पीछे छोड़ आगे अपने शहर कि और बढ़ने लगे ,

जहां सभी थके हुए अपनी अपनी जगह पर सो रहे थे,उसी बस के एक कोने से मैंने इस यात्रा कि अविस्मरणीय यादों को अपनी लेखनी से जिंदगी भर साथ रखने का तुच्छ प्रयास करके परिवार के उस छोटे सदस्य का ह्रदय से धन्यवाद  देने कि कोशिश कि है जिसने परिवार कि महिलाओं को यात्रा पर भेजने कि योजना बनाई और हमारी यात्रा का सारा खर्च उठाया,

                              धन्यवाद संदीप,

                                         _ संगीता थपलियाल,,



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