खैरी का दिन

प्रस्तावना _ कहानी का शीर्षक पुराने समय में उत्तराखंड के पहाड़ी  महिलाओं कि दयनीय स्थिति को दर्शाता है, पहाड़ी महिलाओं का जीवन किस तरह से खेतों और जंगलों पर निर्भर था और साथ ही अशिक्षा, गरीबी, बेरोजगारी जैसी समस्याओं के कारण जीवन यापन करने के लिए उन्हें खेतों और जंगलों में काम करना पड़ता था, उनके पास कोई दूसरा विकल्प ही नही बचता था। 

कहानी _  आज कुछ साल बाद अपने गांव जाना हुआ,मेरा छोटा सा गांव उत्तराखंड के पौड़ी जिले में है, बस कि खिड़की से पहाड़ों के प्राकृतिक सौंदर्य को निहारती रही, कितना शुकून है इन पहाड़ों में, लेकिन बहुत कुछ बदल गया हो जैसे, पुरानी यादों ने आंखों को नम कर दिया था आखिर बचपन और जवानी के कुछ साल मैंने इन्हीं पहाड़ों में गुजारे थे, गांव के रास्तों से होकर गुजरी तो क ई घरों में ताले, और क ई घरों को टूटा हुआ पाया, बंजर पड़े खेतों को देख मन दुखी हो गया,।   

शाम को गांव घुमने निकली तो एक सत्तर साल कि बुजुर्ग महिला से मुलाकात हुई, जिन्हें मैं काकी कह कर पुकारा करती थी, पांव छूकर मैंने प्रणाम किया तो काकी ने बड़े प्यार से मेरे सिर पर हाथ फेरा और मुझे गले लगा लिया, और मेरा हालचाल पूछने लगी, 

कुछ समय बाद मैंने काकी से गांव के बारे में पूछा तो काकी कहने लगी _ गांव में अब बहुत कम लोग रहते हैं, यहां के नौजवान कुछ नौकरी कि तलाश में, और कुछ बच्चों को पढ़ाने का बहाना बना कर शहरों में जा बसे हैं, अब यहां कोई भी खेती नही करता,दो चार लोग खेती करते हैं तो उनकी फसलें जंगली जानवर खा जाते हैं, इसलिए यहां के खेत बंजर हो गए है, 


एक समय था जब पहाड़ों में रहने वाले लोगों को अपने जंगलों और खेतों से बहुत प्यार था, वह अपने खेतों को कभी भी बंजर होता नही देख सकते थे, महिलाओं का जंगलों और पहाड़ों के प्रति प्रेम का उदाहरण चिपको आंदोलन है, जहां गौरा देवी और अन्य महिलाओं ने पेड़ों और जंगलों के लिए अपने प्राण संकट में डाल दिया था,  

यहां कि महिलाएं बहुत मेहनती रहीं हैं, इन्होने बड़े परिश्रम से इन पहाड़ों को हरा भरा बनाया है, यहां कि महिलाएं जंगलों और खेतों से आते जाते थोडे  समय के लिए विश्राम करती है तो यही वो पल उनके लिए सुखद होते है वो इन पलों में ही हंसी मजाक कर लेती है और अपना सुख दुख बांट लेती थी,

इतने में सामने रखे हुक्के में काकी ने तम्बाकू भरा और हुक्का गुड़गुड़ाने लगी, मेरी जिज्ञासा जाग उठी थी, तो काकी से पूछ बैठी _ काकी आप जब जवान थी तब आप क्या क्या काम करती थी ? 


 काकी मुस्कुराई और हुक्के को गुड़गुड़ाते हुए बोली _ 
मै क्या गांव कि सारी औरतें सूरज निकलने से पहले घर का सारा काम कर लेती थी, सुबह जल्दी उठकर जल स्रोतों से पानी लाना वहीं से नहा धोकर, कपड़े भी वही से धोकर लाते थे, फिर गाय का दुध निकालना उन्हें घास पानी देकर गोबर निकालना, दिन और सुबह का भोजन इकठ्ठे बना कर खेतों में चले जाते थे, शाम को जब घर आते तो सिर पर रख कर घास या लकड़ी लाते थे, उसके बाद गेहूं कि पिसाई या धान कि कुटाई होती थी,तब जाकर रात का खाना बनता था,।

उस समय लोग बहुत गरीब होते थे,हर परिवार में सात या आठ बच्चे हुआ करते थे,भर पेट भोजन भी नहीं मिलता था,उस जमाने में हर घर में गाय,भैंस और बैलों कि जोड़ी हुआ करती थी,हर घर में दुध दही मक्खन हुआ करता था,जब भर पेट भोजन नही मिलता तो छांछ या चावल का मांड पीने को मिलता था, उस समय लोग केवल फसलों पर निर्भर रहते थे,

गांव में ना तो बाजार थे, और ना ही सड़कें, अस्पताल तो इतने दूर कि मरीज आधे रास्ते में मर जाता था, गांव में कोई बिमार होता तो जड़ीबूटियों और तंत्र मंत्र से इलाज किया जाता, उस समय ज्यादा लोग अशिक्षित थे , लेकिन शिक्षा के क्षेत्र में जल्दी बदलाव हुआ और जल्द ही हाई स्कूल और इंटर कालेज खुल गये थे, 

महिलाओं कि दशा बहुत दयनीय थी,उस जमाने में उनको ज़्यादा पढ़ाया नही जाता था और कम उम्र में ही विवाह कर दिया जाता था,

आज भी पर्वतीय नारी सिर और कमर पर हमेशा घास लकड़ी के बोझ तले दबी रहती है, जंगलों में घास लकड़ी के लिए चट्टानों और फिसलन भरे रास्तों से होकर गुजरती है तो कभी कांटों और पत्थरों से हाथ पैरों में चुभन और दर्द सहन करती  है, 

इतने में काकी ने अपनी साड़ी के पल्लू से आंसू पोंछे और कहने लगी _ ब्बा हमुल बहुत खैरी का दिन दिखीं, जिसका मतलब है बेटी हमने बहुत दुख देखें है, 

मैंने काकी से फिर से सवाल पूछा _ काकी महिलाऐं इतना काम करती थी तो पुरुष क्या काम करते थे ? 

काकी ने कहा _ कुछ नौकरी कि तलाश में शहर जाते थे तो सालभर में घर आ पाते थे, कुछ गाय और बकरी चराने काम करते थे, और कुछ हल लगाने का काम करते थे, उस जमाने में हस्त कला को ज्यादा महत्व दिया जाता था, पहाड़ों में उगने वाली चीजों से वस्तुओ का निर्माण होता था जैसे _ बांस कि टोकरीयां, गेहूं के घास कि डंडीयो से चटाईयां, भेड़ों के बाल से कम्बल, भिमल के पेड़ से रस्सी बनाई जाती थी ,दुध उत्पादन और भेड़ों का लेन देन, आदि आय के स्रोत थे, लकड़ी के कारीगर और पत्थरों के सुन्दर घर बनाना पुरुषों का काम था,

फिर काकी ने लंबी सांस ली और कहने लगी _ पिछले कुछ सालों में बहुत बदलाव हुआ है, उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में तेजी से विकास हुआ है, आज चौड़ी सड़कें, अस्पताल, स्कूल , कालेज, बिजली, बाजार, अनेकों सुविधाएं उपलब्ध है , आज महिलाएं शिक्षित हो रही है, सरकार द्वारा गरीबों को सस्ती राशन दी जा रही है, स्वास्थ्य शिविर लगाए जाते है ,

कुछ चिंतित भाव से काकी ने कहा _   एक तरफ हमारे पहाड़ों में विकास हो रहा है, लेकिन मुझे लगता है सुविधाओं के कारण पहाड़ों में रहने वाले लोग आलसी और लापरवाह हो गये है, आज कोई भी खेती नही करना चाहता,सब शहरो में नौकरी करके वहीं बसना चाहते है, अगर हमारे पहाड़ों में रोजगार होता तो शायद पलायन ना होता । 

आज काकी जैसी अनपढ़ औरत से बहुत कुछ सीख कर जा रही थी, अंधेरा होने को आया तो मुझे घर जाना था, मैंने काकी से विदा ली और अगले साल फिर से गांव आने का वादा किया,


हमारे पहाड़ों कि औरतों कि कर्मठता व संघर्ष पूर्ण जीवन कि कहानी सुनकर गर्व महसूस होता है, और साथ ही पलायन जैसी समस्या से आने वाले समय के लिए हमें चिंतित होना पड़ेगा ।। 




                    _ _   संगीता थपलियाल,,

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