आजाद उड़ने दो,


आजाद उड़ने दो,

ख्वाब देखे मैंने नये,
हकीकत में बदलने दो,
बेटी हूं पंछी नही ,
पिंजरे से आजाद उडने दो,

            है पथ कठिन मेरा,
            हौसला बुलंद है,
            आकाश को छू लूं ,
            ऐ ख्वाब मेरा है ,

मिले अधिकार मुझे,
मैं भी ख्वाब सजाऊं,
दो अक्षर पढ़ लिखकर 
पुरुषों संग कदम बढ़ाऊं ,

            मिले सम्मान मुझे,
             मुझे नई पहचान मिले,
             भारत कि बेटी का गौरव,
              मेरे सिर का ताज बने,

नव चेतना है,नई उमंग,
ख्वाहिशों के पंखों को,
ऊंची उड़ान भरने दो,
बेटी हूं पंछी नही, 
पिंजरे से आजाद उड़ने दो,

                              
                        _संगीता थपलियाल,,

व्याख्या।्__ प्रस्तुत कविता में एक मध्यम वर्गीय परिवार कि बेटी अपने परिवार, समाज, से कहना चाहती है,कि उसे घर कि

चारदीवारी में कैद करके ना रखा जाए, वो पढ़ लिख कर पुरुषों
के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करना चाहती है, वह जीवन में आगे बढ़ना चाहती है, इसलिए उसे अपने सपनों को पूरा करने का अधिकार दिया जाए ,।। 


पर्वतीय ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा _  शिक्षा के क्षेत्र में आज महिलाएं पुरुषों से आगे निकल आई है, देश के विकास में अपना पूरा योगदान दे रही है, समाज के कल्याण हेतु महिला सशक्तिकरण होना जरूरी है, लेकिन आज भी पर्वतीय ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक निर्धनता, लैंगिक भेदभाव, कालेज और विद्यालय का दूर होना, जैसे कारणों से बेटियां उच्च शिक्षा प्राप्त नही कर पाती, वह अपने घर परिवार तक ही सीमित रह जाती है, इन सभी समस्याओं को दूर करने के लिए सरकार को और प्रयास करने होंगे,।।
         
                 
                                     संगीता थपलियाल,,,

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