जिसमें एक प्रश्न था कि!
सबसे बड़ा बौझ क्या है तो धर्मराज युधिष्ठिर का जबाब था ऋण, ऋण ही सबसे बड़ा बोझ है
मगर ऐसा लगता है कि जैसे आज हर व्यक्ति loan (ऋण) लेना चाहता है जैसे loan, care home loan personal loans इत्यादि आज ऋण शायद बोझ कम और fashion ज्यादा नजर आता है!Dear Readers आज हम आपको इसी विषय पर एक सत्य कहानी बताने वाले है
एक कहावत तो आपने सुनीं ही होगी
खाया पिया अंग लगे,
लिया दिया संग चले!
पूर्व जन्म का गहरा ऋण का राज
मजबूरन वह एक दिन एक कुम्हार के पास गया और बातों बातों में रुपये मांगने की बात भी कह दी शायद किसी ने सही ही कहा है कि समय से पहले और भाग्य से ज्यादा कभी कुछ नहीं मिलता कुम्हार ने हा कह दिया
जीवन की गाड़ी चलतीं रही उस व्यक्ति का एक ही बेटा था अरुण नाम का सो वह भी जवान होकर किसी तरह नोकरी पर लग गया पर उस व्यक्ति से उस कुम्हार का ऋण ना चुकाया गया अब तो शरीर ने भी साथ देना छोड़ अब दाल रोटी का जिम्मा बेटे के कंधों पर आ गया !
विधिविधान के अनुसार जो थरती पर आया है उसे जाना भी है फिर चाहे भगवान नारायण के रुप में प्रभु श्री राम हो या श्री कृष्ण अवधि अनुसार वह भी एक समय सीमा तक ही पृथ्वी लोक में रहे फिर हम तो मानव मात्र है वह इस धरती पर आया था तो जाना भी तय था एक दिन वह कृषक भी चल बसा!
अब सारी जिम्मेदारियां पूर्णतः उस कृषक के बेटे अरुण पर आ गई नोकरी के साथ खेल खलिहानों की देखरेख इत्यादि!
अरुण पिता की मृत्यु दुख को भुलाने में दिन प्रतिदिन अपने काम में मशरूफ हो गया एक लंबा अर्सा कब व्यतीत हुआ उसे पता ही नहीं लगा! !
काफी समय के बाद एक रात अरुण को एक सपना हुआ! जिसमें उसने बैल के रूप में अपने पिता को देखा
बहुत सोचने के बाद उसे सुबह होने का इंतजार था देर होगी अंधेर होगी, होगी जरूर सबेर होगी
सुबह होतें ही वह स्नान पूजा करके जल्दी- जल्दी में उस कुम्हार के घर को निकल दिया कुम्हार के घर पहुचते ही राम राम के साथ इथर उधर की बातें करते करते अरुण ने पुच्छ ही लिया चाचा आपसे पिता जी ने कुछ पैसे लिए थे क्या❓
हाँ बेटा वह तो बहुत पहले की बात है पर तुमको आज क्या सूझी
अरुण चाचा कल एक चिठ्ठी मिलीं तो ..... कितने देने थे चाचा ??
कुम्हार कुछ याद करते हुए बेटा शायद आठ रुपये बारह आने
अरुण ने तुरंत दस रुपये कुम्हार की ओर बढा दिए जैसे ही कुम्हार ने दस रुपये पकड़े अरे बेटा ये तो ज्यादा है ! कोई बात नहीं चाचा अरुण का कहा सुनकर कुम्हार का पैसे जेब में रखना था कि....... आंगन में बंधे बैल ने अजीबोगरीब आवाज निकाली और प्राण त्याग दिये
कुम्हार को कुछ अजीब सा लगा अरे अब इसे फेकने को भी कुम्हार ने इतना कहा ही था कि अरुण अरे चाचा ओ देखो सामने हमारा ही खेत है वंही गाड देते हैं
इस कहानी से एक ही सन्देश देखने को मिलता है कि जीवन में हम जो भी करते हैं अच्छा बुरा वह हमें अगले जन्म में भोगना निश्चित है ||
एक कहानी
एक पुराने समय की बात है एक गाँव में एक गरीब कृषक रहता था वह अपनी खेती के सहारे जो भी income होती थी उसी से अपने Family का भरणपोषण कर रहा था एक दिन उसे कुछ रुपयों की जरूरत पड़ी उसने सारे नाते रिशतेदारो से एक प्रकार से गुहार लगाई पर ये जानकर सबने मना कर दिया कि यह अपने परिवार का तो पूरा कर नहीं पाता कर्ज कैसे चुरायेगा !मजबूरन वह एक दिन एक कुम्हार के पास गया और बातों बातों में रुपये मांगने की बात भी कह दी शायद किसी ने सही ही कहा है कि समय से पहले और भाग्य से ज्यादा कभी कुछ नहीं मिलता कुम्हार ने हा कह दिया
जीवन की गाड़ी चलतीं रही उस व्यक्ति का एक ही बेटा था अरुण नाम का सो वह भी जवान होकर किसी तरह नोकरी पर लग गया पर उस व्यक्ति से उस कुम्हार का ऋण ना चुकाया गया अब तो शरीर ने भी साथ देना छोड़ अब दाल रोटी का जिम्मा बेटे के कंधों पर आ गया !
विधिविधान के अनुसार जो थरती पर आया है उसे जाना भी है फिर चाहे भगवान नारायण के रुप में प्रभु श्री राम हो या श्री कृष्ण अवधि अनुसार वह भी एक समय सीमा तक ही पृथ्वी लोक में रहे फिर हम तो मानव मात्र है वह इस धरती पर आया था तो जाना भी तय था एक दिन वह कृषक भी चल बसा!
अब सारी जिम्मेदारियां पूर्णतः उस कृषक के बेटे अरुण पर आ गई नोकरी के साथ खेल खलिहानों की देखरेख इत्यादि!
अरुण पिता की मृत्यु दुख को भुलाने में दिन प्रतिदिन अपने काम में मशरूफ हो गया एक लंबा अर्सा कब व्यतीत हुआ उसे पता ही नहीं लगा! !
काफी समय के बाद एक रात अरुण को एक सपना हुआ! जिसमें उसने बैल के रूप में अपने पिता को देखा
बेटा इस कुम्हार के आठ रुपये बारह आने (8:75) चुका दे मै इसके यहाँ तीन साल से घडे़ डौ रहा हूँ और बडी बिपति में हुँ मुझे मौत भी नहीं आ रही किसी समय में मैंने इससे यही आठ रुपये बारह आने कर्ज लिए थे और अरुण का सपना टूट गया!
अब अरुण की आंखों में मानो निन्द नहीं थी रह रहकर उसे वही सपना याद आ रहा था क्या सच में मेरे पिता उस कुम्हार के घर में बैल 🐂 के रूप में है वह करवटें बदलता रहा पर निन्द नहीं आईबहुत सोचने के बाद उसे सुबह होने का इंतजार था देर होगी अंधेर होगी, होगी जरूर सबेर होगी
सुबह होतें ही वह स्नान पूजा करके जल्दी- जल्दी में उस कुम्हार के घर को निकल दिया कुम्हार के घर पहुचते ही राम राम के साथ इथर उधर की बातें करते करते अरुण ने पुच्छ ही लिया चाचा आपसे पिता जी ने कुछ पैसे लिए थे क्या❓
हाँ बेटा वह तो बहुत पहले की बात है पर तुमको आज क्या सूझी
अरुण चाचा कल एक चिठ्ठी मिलीं तो ..... कितने देने थे चाचा ??
कुम्हार कुछ याद करते हुए बेटा शायद आठ रुपये बारह आने
अरुण ने तुरंत दस रुपये कुम्हार की ओर बढा दिए जैसे ही कुम्हार ने दस रुपये पकड़े अरे बेटा ये तो ज्यादा है ! कोई बात नहीं चाचा अरुण का कहा सुनकर कुम्हार का पैसे जेब में रखना था कि....... आंगन में बंधे बैल ने अजीबोगरीब आवाज निकाली और प्राण त्याग दिये
कुम्हार को कुछ अजीब सा लगा अरे अब इसे फेकने को भी कुम्हार ने इतना कहा ही था कि अरुण अरे चाचा ओ देखो सामने हमारा ही खेत है वंही गाड देते हैं
इस कहानी से एक ही सन्देश देखने को मिलता है कि जीवन में हम जो भी करते हैं अच्छा बुरा वह हमें अगले जन्म में भोगना निश्चित है ||