एक झरोखा मेरे घर का,
जो तेरे घर को ताकता
रहा,एक नज़र थी ,जो तुम्हें
पलभर देखने को तरसती रही,
गलियों से होकर जब भी
गुजरती है हवा पूच्छती है, "कहां हो
तुम," क्या, तुम्हे भी मेरी याद आती होगी,
बड़ा बेदर्द होगा वो शहर,
जहां के तुम हो गये,
हम तो आज भी,
गांव कि गलियों में, तुम्हारी राह देखा करते है,
सुना था लोगों से,
वक्त के साथ इंसान बदल जाया करते है,
लेकिन तुम बदल जाओगे,
ये सोचा ना था,,