कोरोना का कहर corona havoc
कोरोना भी एक आतंक की तरह आया और पुरे विश्व मे तबाही का आतंक मचा दिया शायद ही कोई ऐसा मुल्क या देश होगा जहाँ कोरोना संक्रमण ना पहुचा हो ,
कोरोना को अगर तीसरे विश्वयुद्ध की उपाधि देकर कहे तो कुछ गलत नहीं होगा ना जाने कितने घर उजड़े कितने परिवार तबाह हुये कुछ कह नही सकते ! उस दौरान जिधर झांको मातम ही मातम था कंही अस्पतालों में बैड़ नहीं तो कंही ओक्सिजन की आपूर्ति से बेबस तडपते मरते लोग👫👬👭 यहाँ तक कि शमशानो मे मूर्दो के लिए भी नम्बर लगाने पड़े , सोचिए जरा कितना दर्दनाक और सोचनिय था वो समय भी!
अभी कोरोना की पहली लहर बीते कुछ ज्यादा समय नहीं गुजरा था कोरोना की तरास्ती से हर कोई बखुबी जानकार है खैर आज आपके समक्ष एक ऐंसी कहानी रखने जा रहा जो कोरोना से जुड़ी हुई है ! जिसमें दो बच्चों ने माँ पापा दादा👴 दादी गुजरने के बाद कोरोना कहर की मार झेली है और उनको कोरोना जैसी महामारी का पता तक नहीं था मगर फिर भी हर घर के दरवाजे उन दोनो मासूमो के लिए बन्द कर दिए गए!
==========================
मनोज दिल्ली में एक अच्छी कम्पनी में नौकरी करता है और अपनी पत्नी सुहानी तथा दो छोटी छोटी सी बेटीयाँ टिनू class 4th और स्वाति class first में पढती है तथा अपने मम्मी सुलोचना देवी तथा पापा जगतपाल जी के साथ दिल्ली में ही एक दो कमरो के छोटे से मकान में रहता है !
कोरोना की पहली लहर गुजरे कुछ ही मास बीते थे कि कोरोना संक्रमितो की संख्या बढने लगी, रात्रि करफू की बातें सुनने में आने लगी !
सुहानी के ओफिस ना जाने के अग्रह पर मनोज लगभग गुस्से में बोला पागल हो गई क्या अभी - अभी सात महिने से घर पर ही तो था अगर फिर घर में बेठ गया तो खायेंगे क्या ????और हां बच्चों का स्कूल और मम्मी पापा का पार्क जाना बंद कर देना और मनोज सबको हिदायत देते हुए हर रोज की तरह ऑफिस निकल जाता है! रोज रोज बस से आना जाना बस स्टैंड पर लोगों के साथ मिक्स होना ऑफिस में सबके साथ काम करना जैसे मनोज के लिए आम बात थी
देखते- देखते रात्रि करफू कोरोना कैश बढने पर लोकड़ाउन में बदल गया सरकार ने ओफिस में 50℅ स्टाफ रखने की, और लोगों को घरों में ही रहने की हिदायत दी है ! मगर फिर भी लोग 👫👬मानते कहाँ हैं
दिन बीतते गए एक दिन सुबह- सुबह मनोज को सर्दी जुखाम जैसा महसूस हुआ मगर वो सुचारू रूप से ओफिस जाता रहा सुहानी के लाख समझाने पर मेडिकल से दवाई लेने के बाद ओफिस निकल जाता सर्दी जुखाम अब धीरे- धीरे खांसी बुखार में तबदील होने लगी मगर मनोज ने ओफिस जाना बंद नहीं किया , किसी भी बीमारी का समय पर ईलाज ना किया जाए तो वो लाईलाज होने में समय नहीं लेती ठीक मनोज के साथ भी ऐंसा ही हुआ और वो एक दिन बिस्तर से उठने में असमर्थ हो गया अन्ततः मनोज को मेडिकल टेस्ट कराना पडा और मेडिकल रिपोर्ट देखक सबके पैरों तले की जमीन खिसक गईं रिपोर्ट के अनुसार कोरोना संक्रमण 60℅ के पास है यानि लंग्स इंसपेक्सन का खतरा !
मनोज को कोरोना 60℅ से उपर होने की वजह से प्रतिदिन उसकी सेहत गिरती जा रही थी घर में सब लोग इस बात से बडे परेशान थे एक सुहानी को छोड़कर सभी लोगों को मनोज से ना मिलने की हिदायत दी गई थी मगर मनोज की माँ से रहा नहीं जाता था और सुलोचना जी पुत्र मोहवश वक्त वक्त मनोज के पास चली जाती कई बार सुहानी और जगत जी ने भी समझाया मगर सुलोचना जी पुत्र मोहवश फिर भी.......!
बेचारी सुहानी दर दर भटकने को मजबूर थी कभी ऑक्सीजन तो कभी रेंडीसिर्म इंजैकसन को पर हालात की मार के आगे कुछ भी मिलना इतना आसान नहीं था बड़े से बड़े पैसे वाले भी परेशान थे उस दोरान होस्पिटल में बेड़ उपलब्ध नहीं थे रेंडीसिर्म इंजैकसन के दाम तिगुने - चौगुने उसुले जा रहे थे कोई मरे तो मरे! लोग बस जैब गर्म करने का मोका तलाश रहे थे ! मनोज को कोरोना है ये सुनकर सुलोचना जी और जगतपाल जी अन्दर ही अन्दर टुटते जा रहे थे एक ही बेटा है और उसे भी कोरोना . ....
आखिरकार सुहानी दर दर भटक कर परेशान हो गई एक दिन उसने मनोज के बौस को काल करके सारा माजरा बयान कर दिया पहले तो बोस ने शहर में मारा मारी का हवाला देते हुए एक तरह से मना कर दिया मगर अन्ततः कह दिया मै कुछ देखता हूँ
शाम को बोस का फोन आ गया ओर बोस ने सुहानी को ये सुचना दी कि मनोज के लिए एक बेड की ब्यवस्था हो गई आप उसे एडमिड करा सकते हैं सुहानी ने मन ही मन ईश्वर का धन्यवाद किया!
और अगली सुबह मनोज को होस्पिटल में एडमिड करा दिया गया मनोज के लंग्स इंस्प्केशन इतना बढ चुका था कि उसे सांस लेने में भी समस्या होने लगी थी मनोज एडमिड करा दिया गया था और ऑक्सीजन की ब्यवस्था भी हो गई सुहानी सुबह से लेकर शाम तक ज्यादातर होस्पिटल में ही रहती थी
अचानक सुबह से सुलोचना जी खांसी जुखाम और सिरदर्द से परेशान है जगत जी भगवान जाने किसकी नजर लगी इस घर को अभी एक ठीक नहीं हुआ और ये भग्यावान भी खांसी जुखाम से..........
सुहानी अब मनोज की ओर से शांत और निश्चित थी मगर मम्मी जी भी सर्दी जुखाम..
मनोज को एडमिड कराएं 3-4 दिन ही हुएं थे सुबह सुबह फोन आ गया हम होस्पिटल से बोल रहे हैं मैम i am very sorry सुहानी कुछ बोल पाती इससे पहले मैम रात को ऑक्सीजन खत्म हो गई और कुछ मरीज जिनकी हालत नाजुक थी वो बेड पर ही......
सुहानी फोन पर ही रोना शुरू कर देती है मम्मी मम्मी टिनू क्या हुआ इतने में जगतपाल जी भी आ जाते हैं क्या हुआ बहू सुहानी रोते हुए ही सारी बात बताती है जगत जी सन्न रह जाते हैं
कुछ एक घण्टे बाद मनोज के बोस का काल आता है फोन जगत जी उठाते हैं अंकल जी सोरी बहुत दुख हुआ मगर होनी को कौन टाल सकता है थोड़ी देर बाद आप मनोज की डैडबोडी ला सकते हैं मैंने सारा पैमैंट कर दिया है आपको कोई परेशानी नहीं होगी!
अभी मनोज को गुजरे चार दिन भी नहीं हुएं थे कि सुलोचना जी की हालत मनोज जैसे ही होने लगी सुहानी और जगतपाल जी के आंसू सुखने से पहले एक और चिंता ने दोनों को परेशान करने पर मजबूर कर दिया!
सुहानी एक बार फिर से उसी स्थिति में आ गयी जो मनोज के साथ हुई थी दवाई ऑक्सीजन एडमिड ईत्यादि मगर अब तो पैंसो की तंगी भी महसूस होने लगी इन सबको सम्भालते सम्भालते सुहानी भी खांसी जुखाम की चपेट में आ गईं मगर सबकी देखरेख में खुद पर ज्यादा ध्यान नही दिया और सुचारू रूप से दैनिक दिनचर्या में ब्यस्त रही
सुहानी के मन में बारम्बार एक ही खयाल कटोच रहा था मैने उस समय हेल्थ पॉलिसी को मना क्यूँ किया होगा
जगतपाल जी ने मनोज के बोस को काल कर सारा माजरा बयान करने का प्रयास किया , पर इस बार अंकल जी मनोज हमारे यहाँ काम करता था इस नाते उसका इलाज कराना हमारा फर्ज था एक बार ब्यवस्था क्या करा दी आपने तो हद ही......... और फोन काट दिया जगतपाल जी कुछ ना कह सके! और मजबूरन सुलोचना जी को एक सरकारी होस्पिटल में एडमिन करना पड़ा जिसे जगत जी हरगिज़ नहीं चाहते थे !
एक तो अस्कों सेलाब
उस पर वक्त के नाजुक हालात
बयान करें तो किससे करें
किसे बताएं दर्देदिल के जज्बात
अभी सुलोचना जी को भर्ती कराए कुछ ही दिन हुए थे घर में सब परेशान थे जगत जी सुहानी सुबह शाम होस्पिटल के चक्कर कि शाम तक एक और बुरी खबर से सुहानी को रूबरू होना पड़ा!
पुत्र शोक पत्नी चिंता बहु का भविष्य के दबाव उपरांत अचानक हृदय गति रुकने से जगतपाल जी ने प्राण त्याग दिये! चौतरफा बेबसी मायूसी लाचारी के आगे सुहानी के भीगे दामन में कुछ नहीं था भरे पुरे परिवार को कोरोना कहर ने मानो डंस लिया हो!
दिन प्रतिदिन सुहानी की हालत बद से बदतर हो रही थी मगर बच्चों की चिंता सांस का खयाल ब्यस्त रहने में मजबूर कर रहा था! सुबह शाम नाते रिश्तेदारों के फोन पर फोन जरूर आ रहे थे सांत्वना देने को मगर सामने तो जैसे कुंडली डाले फन उठाएं सांप बेठा हो डर के मारे सब फोन भर से ही काम चलाने को मजबूर थे
अचानक एक फोन आया और सुहानी का शक यकीन मे बदल गया!
To Be continue यह कहानी आगे भी जारी रहेगी इसका दुसरा भाग शीघ्र अतिशीघ्र आपके समक्ष होगा
जिस प्रकार coronavirus ने दुनिया में तबाही मचाई कई घर बर्बाद हुए और कई परिवार तबाह लोगों को होस्पिटल में बेड़ ,ऑक्सीजन, रैंडुसीर्म,इंजेक्शन की मारामारी को देखते हुए शमशान में नम्बर लगाने पड़े इस मंजर को सामने से देखने पर यह मेरी पूर्णतः काल्पनिक कहानी है इसके सारे पात्र एवं पात्र नामवलि सारी काल्पनिक हैं ||