काव्य संग्रह
सपना मेरे मन की कल्पना
रात Night को सपने में In a Dream जाने क्या क्या देख लेतें है
और सुबह Morning 🌄 तेरे खग Bird तो उड गये सारे
सपनों के खग उड़ा रहा था
भोरे हुई तो किरण बता गयी
अरे तेरे खग तो उड़ गए सारे
क्षण एक की महिमा है लोचन की
पग हवा में होते मन अनन्त में पहुंचे
स्वप्न सहारे सुरप्राशाद में पहुंचे
ओर मन बोला कि मिल गये तारे
सपनों के खग उड़ा रहा था
दूर गगन में पंख पसारे
मन्द मन्द मुस्काती परियां
नृत्य करे कंचन आंगन में
मन का मौर भोर
बिभोर हर्षित होये
स्वर्णांंग के कण कण से
सपनों के खग उड़ा रहा था
दूर गगन में पंख पसारे
https://aalekhdarshan484.blogspot.com/2022/01/16012022.html
श्रृंगार सुसज्जित सजि माधुरी
नैन सुनैना से बात करे
कौन कहाँ का है ये प्राणी जो
ओर अधिक पाने का प्रयास करे
सपनों के खग उड़ा रहा था
दूर गगन में पंख पसारे
कभी सोम सरोवर
कभी स्वर्ण सिहांसन
कभी निहारे अलका को
देख मनोला उड़ उड़ डोला
पारिजात के बृक्ष तले
सपनों के खग उड़ा रहा था
दूर गगन में पंख पसारे
तन सोया था मन जागै
मन उड़न खटोला उड़ जाये
दूर दृश्य अनन्त गगन में
सुरनगरी के द्वारे द्वारे
सपनों के खग उड़ा रहा था
दूर गगन में पंख पसारे
भोर जगें ज्यो नैन खुले
देख बिछौना देह तले
देख नीलाम्बर मन में
सौ बिचार जगेंखाली
मुठ्ठी मन भरा हुआ
कुछ स्मृति याद रहि
कुछ सबेरे भूल गए
सपनों के खग उड़ा रहा था
दूर गगन में पंख पसारे
भोर हुई तो किरण बता गयी
तेरे खग तो उड गये सारे
इसे भी पढ़ें : कोई समझ ना पायेगा (काव्य संग्रह)
Watch my poem on YouTube - click here
https://youtu.be/3IFCX9Yrtj8
.............................................................
Nice
जवाब देंहटाएंThank you❤
जवाब देंहटाएंNice sir ji
जवाब देंहटाएंThank you dear reader
हटाएं