स्वीकृति

 स्वीकृति 

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शाम की हल्की रोशनी में नीता चूल्हे पर दाल चढ़ा रही थी। उसका बेटा रोशन किताबों में उलझा हुआ था। दरवाज़े पर दस्तक हुई। एक डाकिया आया, उसके हाथ में एक सरकारी ख़त था। नीता ने कांपते हाथों से खत लेते हुए खोला — लिखा था: “आपको इस वर्ष के उत्तम शिक्षक पुरस्कार से पुरस्कृत किया जायेगा।” नीता की आंखें डबडबा गई!पहली बार आंसुओ के रूप में खुशियों ने दस्तक दी।

   नीता के मुंह से अनायास ही निकल पड़ा काश मैं अर्जुन से शादी कर लेती तो .........और 

    नीता अतीत की परतों में खोती चली गई! 

     नदी किनारे एक पेड़ की छांव में नीता-रोशन से 

  रोशन क्या तुम मुझे हमेशा यूंही प्यार करोगे 

  रोशन नीता कैसी बात कर रही हो तुमको मुझपर भरोसा नहीं है क्या ??

नीता रोशन तुम पर तो भरोसा है मगर अपनी किस्मत पर नहीं! कभी तुम बुरे वक्त में बदल तो नहीं जाओगे ।

 रोशन नीता आज तुम्हें क्या हो गया है।

 और बातों बातों में समय कब निकल गया पता ही नहीं चला!

   नीता रोशन देखो शाम ढल रही है अब हमें चलना चाहिए 

रोशन रुकों न नीता थोड़ा और तुमसे मिलने के बाद जाने को जी नहीं चाहता।

नीता नहीं रोशन अब नहीं घर पहुंचते पहुंचते देर हो जायेगी। और फिर मां ..... नीता जाने लगी।

   नीता वहां से कुछ ही दूर चली थी कि पड़ोसी गांव का एक नवयुवक अर्जुन जो कि उसे से दो-तीन क्लास आगे पढता था और उससे मन मन बहुत प्यार करता था मगर कभी कह नहीं सका , रास्ते में मिल गया।

   अरे नीता तुम इस वक्त कहां से ??

  नीता कुछ नहीं बस यूंही खैर बात काटते हुए अर्जुन अपनी बताओं आजकल क्या कर रहे हो ??

 अर्जुन कुछ हो न हो मगर दिल तसल्ली के लिए Btc+ ba की तैयारी कर रहा हूं 

  शाम धीरे-धीरे अंधेरे में गहरा रही थी अर्जुन और नीता गांव के निकट पहुंचने वाले थे! 

  नीता अर्जुन मैं चली जाऊंगी 

अर्जुन कोई बात नहीं नीता तुम खामखां परेशान हो रही हो

 अर्जुन नीता क्या तुम्हें मेरे साथ चलना पसंद नहीं ।

  नीता ऐसा कुछ नहीं है अर्जुन 

दोनों चलते-चलते गांव में पहुंच चुके थे 

चलों नीता अब मुझे चलना चाहिए लोग देखेंगे तो पता नहीं क्या सोचेंगे वैसे भी तुम अब गांव में पहुंच चुकी हो ।

   घर पहुंचते ही नीता की मां सरस्वती देवी जो कि एक विधवा व वृद्ध महिला थी जिसने बिन बाप की बेटी नीता को बड़े नाज से पाला था और कभी किसी चीज की कमी महसूस नहीं होने दी मगर आजकल नीता के विषय में तरह-तरह की बातें सुनकर हेरान भी थी और परेशान भी।

  सरस्वती देवी गुस्से में नीता अबतक कहां थी घर आने में इतनी देर कैसी हुई।

 नीता हकलाते हुए मां वो सहेलियों के साथ थी मगर आने में थोड़ी सी देर हो गई।

 सरस्वती देवी गुस्से में अच्छा फिर गदेरे के पास उस नौटंकीबाज छोकरे के साथ कौन थी ये बताओ।

   नीता समझ गई कि अब झूठ बोलना बेकार है मां को सब पता चल चुका है और उसने उस समय चुप रहने में ही भलाई समझी।

  दिन बीतते गए मगर नीता ने रोशन से मिलना नहीं छोड़ा , कारणवश नीता व उसकी मां के बीच रिश्ते के फासले बढ़ते चले गए! या यूं कहें कि मां-बेटी के रिश्ते में खटास अधिक आने लगी फिर भी मां बार-बार एक ही बात कहती रही कि बेटी ये बहारी लोग कौन है , क्या है और कहां से है कोई नहीं जानता भगवान न करे कल क्या दिन देखना पड़े तब तुम्हारे पास पछतावे के सिवाय कुछ न बचेगा , एक बात याद रखना कि बुजुर्गों का कहा और आंवले का स्वाद हमेशा बाद में याद आता है।

    वक्त की नजाकत को देखते हुए अर्जुन ने भी समझाने की कोशिश की मगर नीता को लगता था कि अर्जुन के समझाने में उसका अपना निजी स्वार्थ छिपा हुआ है।

  दिन-प्रतिदिन नीता और उसकी मां के बीच खींचातानी बढती रही मगर उसने रोशन से मिलना नहीं छोड़ा ! और अंततः मां के तानों से तंग आकर वह घर छोड़कर रोशन के साथ भाग गई और वैवाहिक संबंधों में रहने लगी 

  कुछ रोज़ बाद जब रोशन नीता को अपने घर ले गया तब नई-नवेली दुल्हन के लिए वहां सबकुछ अनजान था ! यूं तो उसे उनके पहनावे व रहने सहन को देखकर भांपते देर नहीं लगी मगर  

   अगले दिन सबेरे सबेरे जैसे ही नीता की आंख खुली तो क्या देखती है कि रोशन नमाज पढ़ रहा है नीता को समझते देर नहीं लगी कि उसकी मां सही कहती थी ईश्वर जाने ये लोग कौन, क्या और कहां से है! मगर अब किया भी क्या जा सकता है! 

   औरत एक शीशे की तरह होती है अगर एक बार चटक गई तो दोबारा जुड़ना नामुमकिन होता है यही हाल कुछ कुछ नीता का भी था! वह अब न घर की रही न घाट की ।

  नमाज़ पढ़कर रोशन उठकर नीता के पास बैते हुए देखो नीता अम्मी-अब्बू का कहना है कि हमको पूरे रस्मोरिवाज से एक बार फिर से निकाह करना होगा।

  नीता मगर हम तो शादी कर चुके हैं न ?

रोशन हां नीता मैं कहां मना कर रहा हूं मगर परिवार की इच्छाएं भी तो कुछ मायने रखती है ।

   नीता के पास अब परस्थितियों के अनुकूल ढलने के सिवाय कोई दूसरा चारा नहीं था जिसने बुर्का कभी सपने में भी नहीं सोचा था उसे वहीं बुर्का पहनकर ......

   नीता स्वयं को उनके अनुसार ढालने में लग गई।

यूं तो समय बीतते देर नहीं लगती मगर अगर परिस्थितियां अपने अनुकूल न हो तो वहीं समय काटे नहीं कटता एक तो बिन सामंजस्य का परिवार ऊपर से अम्मी -अब्बू व अन्य रिश्तेदारों के दबाव में बदलते रोशन का व्यवहार! रोशन नीता को कभी-कभी डांटते-डाटते एक दो हाथ भी रख देता था।

    उसने डेढ़ साल कैसे काटा यह वही व्यक्ति समझ सकता है जिसने दुःख में दिन काटे हो !    

   नीता ने डेढ़ साल बाद एक खूबसूरत बच्चे को जन्म दिया ! जहां पहले उसका समय काटे नहीं कटता था वहीं अब वह ज्यादातर समय उस बच्चे में रमी रहती थी।

  मेरा मुन्ना मेरा मुन्ना अधिकांश समय नीता के मुंह पर यही रहता था जिसके लिए वह सांस की झिड़कियां भी सुनती थी , मगर मुन्ने में नीता के प्राण बसते थे।

   जहां दुःख के दिन बीतत नाहीं वहीं सुख के दिनो का पता नहीं लगता, मुन्ना अब सालभर का होने वाला था मगर यह दस-ग्यारह माह कब कटे नीता को पता भी नहीं लगा।

    एक रोज रोशन एक नई नवेली दुल्हन को साथ लेकर आ गया और नीता को कहता है कि देखो नीता आज किसको लेकर आया हूं।

   नीता हैरानी से बहुत खूब क्या आपका एक से जी नहीं भरा, जो एक ओर को ..........

   तुम तो कहते थे कि तुम मुझसे कभी ऊब नहीं सकते फिर आज क्या हुआ जो इसको लेकर आ गये।

  रोशन गुस्से में - बदजुबान तुझको इतनी भी तहजीब नहीं कि नई नवेली दुल्हन के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है और दो-तीन थप्पड़ रसीद दिये।

  स्त्री को अकेले में कितना भी डांट-फटकार लो उसको इतना बुरा नहीं लगता जितना कि किसी अन्य के सामने डांटने-फटकारने पर वैसे तो नीता को इस सब की आदत सी हो चुकी थी मगर आज अन्य समकक्ष स्त्री के सामने , वह घायल शेरनी की भांति हां हां मारो मुझे अब मैं तुम्हारे लिए बेपरवाह, बदजुबान, हो गई हूं क्योंकि तुम्हारा मुझसे दिल भर गया है क्योंकि तुम्हारा दिल बहलाने के लिए ........ रुक क्यूं गये मारो मुझे। 

   रोशन गुस्से में पछताते हुए नीता दिमाग ख़राब मत करो मैं इसको तुमसे मिलाने कितने प्यार से लाया था मगर तुमने तो ,,,,,,,

   नीता खूब जानती हूं मैं तुम्हारा प्यार 

दोनों के बीच झगड़ा बढता चला गया न नीता रुकने को तैयार थी और न रोशन।

   आखिर वही हुआ जिसको नीता ने कभी सोचा भी नहीं था। 

  गुस्से में आकर रोशन तलाक, तलाक, तलाक कमरे में रोशन, नीता और रोशन की नई बेगम रुखशाना के सामने सन्नाटा सा छा गया! नीता में अब इतनी हिम्मत नहीं थी कि कुछ बोल सकें।

   कुछ देर रुककर अब देख क्या रही हो चली जाओ यहां से चली जाओ रोशन अब पूरे आवेग और गुस्से में था हां हां मन भर गया मेरा तुम से अब चली जाओ यहां से और हां अपने लाडले को भी लेती जाना जिसके लिए तुम दिन-रात मरती रहती थी।

  किस्मत की मारी बेचारी नीता ने सपने में भी नहीं सोचा था कि गुस्से के उबाल का असर इस कदर का होगा 

   रोशन चलो रुखशाना इसको इसके हाल पर छोड़ दो इज्जतदार बाप की बेटी होगी तो कल सुबह से पहले खुद ही चली जायेगी । 

   उस रात नीता को नींद नहीं आई और आती भी कैसे एक तो सर्दियों की रात ,ऊपर से तलाक के जज्बात!अब एक असहाय औरत जाएं तो कहां जाएं सब समझ से परे था , कई बार नीता को ख़याल आया कि कुछ कर बैठूं मगर फिर मुन्ने का खयाल आते ही नीता की रूह कांप जाती थी 

  आखिरकार नीता ने फैसला किया कि एक बार वह मां के पास जायेंगी और अपना ज़रूरी सामान समेटने लगी सामान समेटते-समेटते उसे याद कि मैंने कुछ पैसे रखें है जोकि इस जरूरत के वक्त में बेहद काम आ सकते और सारा कुछ समेटने के बाद वह किसी से बिना कुछ कहे मुंह अंधेरे में ही वहां से निकल गई।

   ससुराल से नीता का मायका काफी दूर था कहीं पैदल कहीं गाड़ी का सफर उसको राह चलते एक ही बात के ख़याल आ रहे थे कि अगर मां ने भी मना कर दिया तो ,,,,,, नहीं नहीं मां ऐसा नहीं कर सकती मां को मैं अच्छी तरह से जानती हूं।

  पैदल, सवारी और उधेड़बुन में सुबह से शाम तक चलते-चलते आखिरकार शाम होते-होते नीता अपने मायके पहूंच ही गई ! सरस्वती देवी चूल्हे पर रोटियां सेंक रहीं थी! अचानक नीता की गोद में मुन्ने को सामने देखकर ।

  सरस्वती देवी तू और वो नहीं आया जिसके लिए तू मुझसे .......... गुस्से में तमतमाई सरस्वती देवी नीता पर गर्जी।

  नीता चुप रही वह जानती थी कि इस समय मां से ज्यादा कुछ कहना ठीक नहीं।

सरस्वती देवी आज पूरे गुस्से में थी और यह रहकर बीच-बीच में इसका बाप कहां है, बार-बार एक ही बात को सुनने के बाद 

  नीता हिम्मत दिखाई उसने मुझे तलाक दे दिया 

सरस्वती देवी क्या????? मगर तलाक प्रथा तो मुस्लिम समाज में होती है न ???

   हां ज्यादातर वो भी वही लोग थे और फूट-फूटकर रोने लगी मानों आज नीता का वर्षों का उबाल उबल रहा हो 

  सरस्वती देवी अब रोने-धोने से क्या फायदा जो होना था सो तो हो चुका ।

   नीता तो पिछली रात और सफ़र के थकी होने के कारण सो गई मगर सरस्वती देवी को उस रात नींद नहीं आई वह रह-रहकर यही सोचती रही कि अब क्या होगा 

   मुझे समाज में भी रहना है हमारे यहां का तो लोग पानी भी नहीं पियेंगे वो भी सिर्फ इस मनहूस के कारण , मैंने किस घड़ी में ऐसी औलाद को जनी होंगी जिसने मुझे न यहां का रखा और न वहां का ।

   अगली सुबह सरस्वती देवी समस्या के समाधान हेतु अपने कुलपुरोहित के पास पहूंच गई।

  सरस्वती देवी पंडित जी नमस्कार 

पंडित जी नमस्कार भाभी जी आज सुबह-सुबह कैसे आना हुआ।

पंडित जी दरअसल वो और एक ही सांस में पूरी रामकथा सुना दी , अब इसका उपचार क्या होना चाहिए।

पंडित जी ओह यह तो.......... खैर कोई बात नहीं भाभी आप चिंता मत करो! एक छोटी सी पूजा करके उसका और उसको और बच्चे को गौमूत्र, गंगाजल का आचमन करके पवित्रीकरण किया जायेगा तत्पश्चात वह पूर्णतः पवित्र और धर्मांत्रित हो जायेगी।

  सरस्वती देवी जी पंडित जी फिर इस पुण्य काम को आज ही करवा दीजिए आपका बड़ा एहसान होगा।

  पंडित जी जी भाभी जी वैसे भी यह काम आज ही करना होगा।

  और दोनों जनें सरस्वती देवी के घर की ओर चल पड़े।

  उसी दिन पंडित जी द्वारा नीता व उसके बच्चे को एक छोटी सी पूजा के दौरान गौमूत्र व गंगाजल आचमन से पवित्रीकरण व धर्मांतरित कर दिया गया।

   दिन कटते रहे नीता और सरस्वती देवी व लोगों के व्यवहार में कड़वाहट निरंतर कम होने लगी और अब बेटी के प्रति सरस्वती देवी का मन भी बदलने लगा !

  सरस्वती देवी निरंतर लोगों से एक ही बात कहती रही कि ईश्वर का न्याय तो देखिए भरी जवानी में बेचारी को सिसकारियां भरने को मजबूर कर दिया काश कहीं इसके लिए दो रोटी की व्यवस्था हो जाती तो मां तेरे चरणों में नारियल और २१रुपये का प्रसाद चढ़ाऊं।

  एक दिन सरस्वती देवी किसी काम से गांव के प्रधान जी के पास गई थी और आदतन वहीं राग अलापने लगी 

    सरस्वती देवी देवर जी कुछ आशा, या कोई अन्य काम हो तो बताना बेचारी नीता का जीवन कट जायेगा 

  प्रधान जी अरे भाभी जी आपने सही टाइम पर याद दिलाया वो कल ही प्रिंसिपल साहब का फोन आया था कि कोई पढ़ी-लिखी लड़की या लड़का हो तो बताना, सरस्वती विद्या मंदिर में बच्चों को पढ़ाने हेतु एक टीचर चाहिएं क्या नीता पढ़ा पायेगी ।

  अन्धे को क्या चाहिए दो आंखें सरस्वती देवी की तो जैसे मन की मुराद पूरी हो गई जी देवर जी पूछकर बताती हूं लगवा दो आपका बड़ा एहसान होगा।

 सरस्वती देवी घर पहुंचते ही नीता को आवाज लगाते हुए ।

नीता सरस्वती देवी को जी माजी ।

सरस्वती देवी तूं बच्चों को पढ़ा सकती ।

नीता कहां और कितने बड़े बच्चे हैं ।

सरस्वती देवी सरस्वती विद्या मंदिर में छोटे बच्चों को पढ़ाना है प्रधान जी बोल रहे थे।

   जी माजी हो जायेगा।

 सरस्वती देवी ये खबर सुनकर काफी खुश थी और उस शाम उसने शाम को पूरी-पकोड़ी बनाई 



             

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