** उम्मीद की एक किरण **
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शिथिल होकर रक्त सभी
की धमनियों में जम गया ,
या किसी में कुछ सांस बाकी है ।
क्या क्षीण होकर बिखर गया
साहस सभी का या , किसी में
उम्मीद की एक किरण आज भी है ।
सब गर्जने वाले शेर थे या ,
किसी में आज भी रक्त बूंद बाकी है
फिर गिरकर सम्भलना सीखों ।
सिनोंं में दम भरो ,अभी
मंजिलें निकट नहीं शेष समर
जीवन का अभी काफी है ।
आपत्ति राम पर भी आयीं थी ,
गर्जनें मेघनाथ की भी छायी थी ,
पलभर की हार से ना
मन इतना उदास करो ।
लहरें ओर भी आयेंगी
बस लहरों का इंतजार करो ।
राणाप्रताप की भाँति पुनः ,
मन का चेतक तैयार करो ।
उठो जागो- जागो- जागो ,
पुनः नव प्रयास करो !
जीवन है ये जीवनभर
प्रयासरत बनें रहो ।
कल फिर सूरज निकलेगा ,
देह में नयी स्फूर्ति लायेगा ,
सिनों में दम भरों ।
जो द्वंद्व है मस्तिष्क में उसे
चाणक्य की भाँति साकार करो
जीवन नाम है सघर्ष का
सदैव सघर्षरत बनें रहो ||
®देवसिंह गढवाली