सामान्यत: आज शहरी व्यक्ति गाँव वाले की अपेक्षा समय से पहले बुढा हो जाता है जैसे नजर कमजोर, बाल पकना, शरीर में थकावट, जैसे बुढ़ापे के शुरुआती लक्षण शहरी व्यक्ति में जल्दी दिखाई देतें है हैं! आखिर क्यों! ?????
आज हम द्वापर, त्रेता, या सतयुग जैसे युगों की बात नहीं कर रहे हैं वरन् मात्र 100 या 90 साल पीछे जिन लोगों का जन्म हुआ था उनमें से कई ऐसे लोग है जिन्होंने गाँव में ही जीवन यापन किया ! वे 90 पार के बाद भी पूर्ण रूप से स्वस्थ ही नहीं अपितु हिस्ट पुसट भी है!
मगर आज शहरी व्यक्ति urban person 40 के पार होते होते ही कई बिमारियों का शिकार होने लगता है! बाल पक जातें हैं चेहरे पर झुर्रियाँ दिखाई देतीं हैं आंखों में चश्मा इत्यादि
किसान को व्यायाम की जरूरत नही
दरशल किसान जो पूर्ण जीवन यापन गाँव में ही करता है वह दिनभर कढ़ी मेहनत और कठिन परिश्रम के बाद एक फसल की पैदावार कर पाता है ! इतने कठिन परिश्रम के बाद उसका शरीर पूर्ण रूप से यू कश जाता है जैंसे किसी पहलवान का शरीर कशरत करने के बाद कशता है!
ठीक इसके विपरीत शहरों में आज का 60℅ मानव किसी मशीन, लैपटॉप, एवं अन्य उपकरण को कुर्सी पर बैठे- बैठे आंखें गढाये 8 से 10 घंटे निकाल देता है जो कि हमे शारीरिक एवं मानसिक रूप से कमजोर बना रहे हैं तथा अल्पायु की ओर धकेल रही है हमे ये 8-10 घंटे की नोकरी किसानों की अपेक्षा ज्यादा सुविधाजनक और आरामदायक लगतीं है जिससे हमारे जांघों या कमर में दर्द की शिकायत भी रहने लगती है व्यायाम तो दूर की बात है !
इतिहास गवाह हैं कि जलती हुई मशीन या गाड़ी को कभी को जंग नहीं लगता जबकि खडी़ मशीन गाड़ी या इत्यादि लोहे की वस्तुएं जंग से स्वत; ही खडी़- खडी़ गल जाती है लम्बे एवं स्वस्थ जीवन का पहला और मुल्यवान मुलमंत्र!
प्रदूषित पर्यावरणकालांतर में हम मुख्य रूप से आरामदायक जीवन के इतनें मोहताज होते जा रहे हैं चंद मीटर की दूरी के लिए भी हमें गाड़ी या बाईक चाहिए घर, ऑफिस, या गाड़ी, जैसे संसाधनों में ( A C) चाहिए ! और यही गाड़ी ( ए सी) जैसे अनेकों उपकरण दिन- प्रतिदिन प्रकृति🌿🍃 को दूषित कर रहे हैं या प्रकृति के लिए घातक साबित हो रहे हैं! और इसी प्रकृति की वायु जल जिसे हम हर क्षण गृहण करते हैं जहर की भाँति हमारी सांसों में घुल रहे है! जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव आम शहरी के जीवन में स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है!
जिस प्रकार अत्याधिक अनावश्यक उपकरदिणो का जहरीला धुऑ दिन - प्रतिदिन ओजोन परत ozone layer जैसे ब्रहमाण्ड को घेरकर कमजोर बनाने में सहायक हो रहे हैं उसीतरह आधुनिक मानव भी क्षीण हो रहा है! और अल्प आयु की और अग्रसर है!
पर्यावरण कितना दूषित है इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि कोरोना काल के दौरान बहुत दूर तक स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा था और अब.....
Nonpure food अशुद्ध भोजन
जैसे कि हम ऊपर आपको अवगत करा चुके हैं कि पहले के मुकाबले आज 50℅ किसान ही खेती कर रहे हैं इससे उनपर अतिरिक्त भार और कम समय में अधिक फसल की पैदावार के लिए जैविक कृत्रिम खाद के कारण फसल सब्जी जैसे पोस्टिक आहार समय से पूर्व तो खाने योग्य हो रहे हैं किंतु उस आहार का पोष्टिकता पहले ही मर जाती है!
अगर हम 1970-80 की बात करे तो 60℅ व्यक्ति अपने उपजाये अनाज या स्वयं के दुधारु जानवरों पर आधारित था किंतु आज सोयाबीन दूध एवं अशुद्ध तेल Nonpure food पर आधारित है जिससे हमारा शरीर कोलस्ट्रोल के कारण अनेकों बिमारियों के शिकार हो रहा हैं!
अल्पायु नशा सेवन
नवपिढी का एक तिहाई हिस्सा मृत्यु के निकट लेजाने वाले नशे के आधीन हो चुकी है जिसमें मदिरा पान, लिवर को निरंतर क्षीण कर रहीं हैं धूम्रपान, हमारी सांसों में जहरीला पदार्थ मिला रहे हैं! वैधानिक चेतावनी के बाद भी गुटका तम्बाकू जैसे धिम्मे जहरीले slow poison का सेवन कर हम पल- प्रतिपल मृत्यु कीओर अग्रसर हैं !
समय का आदर हर किसी को मुल्यवान बनाता है और यही मूलमंत्र आज विपरीत दिशा में देखने को मिल रहा है!