चमोली गढ़वाल के वृक्ष मित्र virax mitter by chamoli garhwal

 यूँ तो देवभूमि उत्तराखंड के कण कण में  पर देवी देवताओं का वास है जिस प्रकार हम आपको पिछली कुछ आलेखों में बताते रहे हैं!

रूपरेखा
आवागमन
स्व श्री नारायण सिंह नेगी जी
गाँव सणकोट
#   लोक पौराणिक कथाएँ


रूपरेखा
  एक बार फिर से आज हम आपको बताने जा रहे हैं उत्तराखंड के चमोली जिला के नारायणबगड़ के पास गाँव सणकोट के विषय में जिसको आमतौर पर सणकोट के नाम से कम और नौ धारा (प्राकृतिक जल स्रोत) के नाम से ज्यादा जाना जाता रहा है !

यहाँ  पर्यटकों को दो मुख्य आर्कषण के केन्द्र देखने को मिलेंगे! पहला नोधाराए प्राकृतिक जल श्रोत जैसे कि पुरे उत्तराखण्ड में एक ही स्थान पर एक साथ नोधाराए शायद ही कंही ओर देखने को नहीं मिलते हैं

 और दुसरा स्व श्री नारायण सिंह नेगी जी द्वारा उपजाया गया 30 हेक्टेयर भूमि पर एक विशाल अरण्य जिसकी शुरुआत आज से 54 वर्ष पूर्व की गई थी और आज देखने योग्य है उस समय पर्यावरण के विषय में शायद बहुत कम लोगों ने सोचा होगा जिनमें श्री नेगी का नाम भी सम्मिलित हैं 

    यहाँ के जल कुँड़ में स्पष्ट रूप से कई नाग देखें जाते हैं अगर देखा जाए तो कुंड में एक अनोखा रहस्य छिपा हुआ है!

   इस कुंड में सर्पों का बसेरा होते हुए भी बच्चे कुंड में खेलते रहते हैं किंतु बच्चों को कभी कोई नुकसान नहीं पहुँचा जो कि किसी रहस्य से कम नहीं है !

https://www.atulyaaalekh.com/2022/06/blog-post_9.html

आवागमन
यहाँ जाने के लिए आप दिल्ली से देवधाम    हरिद्वार से ऋषिकेश से गढ़वाल की  पौराणिक राजधानी श्रीनगर से रूद्रप्रयाग, गोचर, narayanbagar से ग्राम सनकोट या नौ धारा से प्रचलित गाँव पहुँच सकते हैं!

  स्व श्री नारायण सिंह नेगी जी

  श्री नेगी जी का जन्म अगस्त 1926 में     chamoli garhwal के सणकोट गाँव में हुआ उन्हें बाल्यकाल से ही  कृषि सम्बंधित कार्यो से विशेष लगाव रहा !
    उन्होंने प्राथमिक शिक्षा निकटवर्ती विध्यालय से प्राप्त की और ब्रिटिश फौज में  सेवा के दौरान द्वितीय विश्व युद्ध  में सम्मिलित हुए!

 



    किन्तु उनका जन्म तो मानो  किसी और ही कार्य हेतु  हुआ था यद्यपि वह जान बचाकर घर लौट आए और पुलिस बिहार में  कुछ समय के लिए भी सेवा दी किंतु जन्म से ही पेड़ पौधों और प्रकृति के प्रति  रुझान होने के कारणवश पुनः वह अपनी माटी, गढभुमि मे वापस लौट गये!
    और 1968 में कृषि कार्यौ से शुभारंभ किया उन्होंने 30 हेक्टेयर भूमि पर  चकबन्दी कर वृक्षारोपण का शुभारंभ किया जोकि आज एक घन्ने  जंगल के रुप में देखा जा सकता है !

स्व श्री नारायण सिंह नेगी जी  एक ऐसै  महापुरुष थे जिन्होंने 54 वर्ष पूर्व पर्यावरण के विषय में सोचा वरन् स्वत: ही  बड़ी भूमि का घेराबंदी  कर वृक्षारोपण करकेे उनको पुत्रों की भाँति पाला अपितु उनका सरक्षण भी किया और एक प्रकार से पूरा जीवन पेड़ पौधों के प्रति समर्पित कर दिया जबकि हम आज भी पर्यावरण जैसी गम्भीर समस्या पर ठीक से सुचारू रूप से काम नहीं कर पा रहे हैं!

  इन्हें vriksha mitra award के लिए दो बार भारत सरकार से नामंकित किया गया  किन्तु यातायात के साधन गांव से काफी दूर होने के कारण भारत सरकार के लोग इस वन तक नहीं पहुंच पाये जिस कारण स्वर्गीय श्री नारायण सिंह नेगी जी पर्यावरणविद को वृक्ष मित्र पुरस्कार से वंचित रहना पड़ा !
   स्व श्री नारायण सिंह नेगी जी ने जंगल का खयाल रखते रखते  11 जून 2011 में अन्तिम सांस ली और शरीर त्याग दिया! 

गाँव सणकोट

ग्राम सभा सणकोट पो ओ नारायणबगड़ नाखोली  चमोली गढ़वाल  उत्तराखंड ,पिंडर नदी के बाएं भाग में स्थित असेड-सिमली पटवाड़ी क्षेत्र का घाट व थराली विकासखंड की सीमाओं से मिलता अंतिम गाँव है। सणकोट को प्रकृति द्वारा अपार सुंदरता प्रदान की गई है। तीन तरफ से (बांज, बुरांस,देवदार,उदिस,पांगर,और चीड़)घने जंगलों वह ऊंचे ऊंचे झरनों वह नदी-नालों से घिरा हुआ है, गाँव के पश्चिमी भाग खुला हुआ जहां से महामृत्युंजय महादेव मन्दिर की चोटी वह दूर रमणीक कौब गांव की सुंदरता वह कौनपुर डंडा की लम्बी पर्वत चोटियों के वह पिंडर घाटी के सुंदर रमणीय स्थानों के दर्शन आप को हो जाएंगे। गांव के  मध्य में श्री आति गुरु शंकराचार्य जी के  युग में बने माँ नागनी को समर्पित भूमिगत जल के 9+1पानी के शंकरचार्य युग की



 वास्तुकला शैली में बने पत्थर के धारे (मंगरे) हैं जो उस युग से आज तक हमारे गांव की सम्पूर्ण पेयजल की पूर्ति के मुख्य स्रोत या साधन हैं। इन धारों की बनावट पहले बहुत सुंदर थी कहा जाता है की यह सभी धारे गोमुख के आकर के थे परन्तु समय के साथ वह सरंक्षण के अभाव में तथा अंधविश्वास के चलते लोगों द्वारा इन्हें खण्डित किया गया जिस कारण यह धारे आज अपने मूल स्वरूप में नही हैं । इन धारों के मूल स्रोत पर माँ नागनी का एक पौराणिक मडुलिनुमा मन्दिर भी है !

लोक पौराणिक कथाएँ

     एक पौराणिक कथा अनुसार कहा जाता है कि जब सृष्टि  की रचना हो रही थी तो उसी समय हिमालय की इस पवित्र भूमि में देवताओं द्वारा जगह जगह यज्ञ आयोजित किया जा रहे थे उसी समय पिण्डर नदी के पश्चिमी भाग जो वर्तमान में कौब(थान) गाँव है उस स्थान पर भकुडा ऋषियों द्वारा एक  यज्ञ का आयोजन किया गया । सनातन धर्म में कन्या को देवी का रूप माना जाता है इसलिए हिन्दू धर्म में शुभ कार्य में कन्याओं के पूजन की प्रथा है ।
    उस यज्ञ में कन्या पूजन हेतु नो कन्याओं की आवश्यकता थी उस समय हिमालय के निकटवर्ती क्षेत्रों में जन जीवन ना के बराबर होने के कारण  ऋषि नाग लोक गए और नागों के राजा से उनकी नो कन्याओं को यज्ञ को पूर्ण करने हेतु  वचन देकर  आए कि यज्ञ समाप्ति  पश्चात आपकी कन्याओं को मै वापस भेज दूंगा ।

   किन्तु यज्ञ 12 वर्षों के एक लम्बे समय अंतराल तक चला ! यज्ञ समाप्ति पर ऋषि थकान के कारण सो  गये और वह भूल गये कि उस नाग कन्याओं को वापस नाग लोक भी भेजना है । ऋषि के सो जाने के पश्चात नाग कन्याए खेलते-खेलते जंगल की तरफ निकल गई । जिस जंगल में वह खेल रही थी !
    कहते हैं कि वहाँ  एक व्यक्ति अपनी बकरियों को चराने के लिए आया हुआ था उसने उन नो अद्धभुत कन्याओं को देखा तो वह व्यक्ति उनके पास गया जिससे नाग कन्याएं  डर गई और भागने लगी ।
     जब वह नाग कन्याएं  ऋषि के आश्रम की ओर भाग  रही थी तो उन में से एक कन्या चट्टान के रास्ते में फंस कर वंही मर गई और शेष 8 नाग कन्याएं ही  ऋषि के आश्रम तक पहुँच पाई
    जब ऋषि की नींद खुली तो ऋषि को नाग कन्याओं को नाग लोक वापस भेजने का वचन याद आया किन्तु मात्र आठ कन्याएं देखकर ऋषि घबरा गए और 9वी कन्या ना आने का कारण से ऋषि को बड़ी ग्लानि हुई  !

और ऋषि ने उन कन्याओं को अलग-अलग क्षेत्र देकर उन्हें वहाँ की ईष्टदेवी के रूप में स्थापित करने का निश्चय किया जो इस प्रकार से है ।  डूंगरी(कडाकोट)रेंस,भटियांना,बैनोली,रतूड़ा(बगोली) घनियाल,प्राणमती(निरोशनाग), । कहते हैं कि  गाँव सणकोट में उन नाग कन्याओं में से सबसे छोटी बहन हैं और वह सणकोट में अपनी इच्छा से आई कहा जाता है कि उन्हें ऋषि द्वारा प्राणमती जो थराली गांव से ऊपर है का क्षेत्र दिया था परंतु उन्हें वह स्थान पसन्द नही आया तो वह वहाँ नही रही और उनके द्वारा ऋषि उस स्थान में न रहने की बात कही और वहाँ से निकल गई इस कारण प्राणमती को निरोसाग भी कहते हैं माना जाता है वह कन्या एक स्थान से दूसरे स्थान चलती रही थी  उसे कोई स्थान पसन्द नही आया चलते चलते वह पहाड़ की एक चोटी में पहुंची तो उन्हें एक सेणों (प्लेन क्षेत्र) देखा जो उन्हें पसंद आया और वह चलते चलते वहाँ पहुंच गई और वहाँ पहुंच कर पानी के कुंड के समीप वह रहने लगी वह स्थान  गाँव सणकोट है तब से उन नाग कन्याओं की सबसे छोटी बहन हमारे गाँव की ईष्टग्राम देवी के रूप में स्थापित हैं इसी कारण नोधाराएं नो बहनों को समर्पित हैं ।

  जब आदिगुरु शंकराचार्य चार धामो की स्थापना हेतु निकल रहे थे तो इस स्थान पर पहुँचने पर नोकन्याऔ का भेद जानकर उन्होंने  यंहा नोधाराए निर्मित की और  तब से आज तक यह धाराएँ निरन्तर वह रही है!

  विशेष जानकारी 

श्री प्रेम सिंह बुटोला ( ग्राम प्रधान) 

श्री नन्दन नेगी 

श्री मनोज नेगी  
  

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