ज्वालेश्वर महादेव चौंधकौट पौड़ी गढ़वाल

ज्वालेश्वर महादेव का इतिहास

रुपरेखा
# आवागमन
# लोक पौराणिक कथाएँ
# भक्तों की आस्था
# नियम और शर्तें

रुपरेखा

जिस प्रकार हम आपको पिछले पोस्ट मे बता चुके हैं कि उत्तराखण्ड के कण कण में देवी देवताओं का वास है और यहाँ आपको को हर कोश पर कोई ना कोई मंदिर जरूर मिल जायेगा! तो आज हम आपके समक्ष रखने जा रहे हैं ग्राम दूनी पट्टी जेंतोलस्यु परगना चौंदकोट में स्थित महादेव जी का स्वयंभो मंदिर जिसे ज्वालेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है यह एक आप लिंग ( स्वयंभो ) है जिसके हम आपको आँखों देखे दर्शन कराने जा रहे हैं!

  आवागमन

दूनी  ज्वालेश्वर महादेव के दर्शन हेतु आप कोटद्वार से पार्टीसैंन होते हुए सतपाली सुराईडांग आ सकते हैं और फिर चमाली सतपाली के खेतों के रास्ते लगभग 3 कि॰ मी॰ की पैदल  यात्रा करते हुए  चौंदकोट परगना में ग्राम दूनी में  स्थित महादेव मंदिर  , या पार्टीसैंन से लगभग 7 कि॰ मि॰  आगे चलकर नर्सरी के ऊपर से   कुलासू मौलखाल कच्ची सड़क से भी दूनी महादेव के दर्शन हेतु पहुँच सकते हैं


 

लोक पौराणिक कथाएँ

जिस प्रकार हमने पिछली पोस्ट में माँ ज्वाल्पा धाम के विषय में आपको अवगत कराया था कि एक गाय द्वारा लिंग के ऊपर स्वत: ही दूध अर्पित हो जाता था कुछ उसी तरह यहाँ भी एक गाय उस लिंग पर  आकर दूध चढ़ा जाती थी!
  बात बहुत पुराने समय की है तब गाँवो में  खेत खलयान दूर - दूर तक आबाद होते थे कारणवश जानवरों को (चुगाने) चराने  हेतु काफी दूर तक ले जाया करते थे  तब अमोली कुलासू के जानवर भी चरने के लिए दूर दूर जाये करते थे !

  एक दिन दूर एक उच्च स्थान पर स्वत: ही धरती दो भागों में बिभाजित हुई और भूगर्भ से  बाल शिवलिंग उत्पन्न हुआ  कारण इसे ( आप लिंग) स्वयंभो  के नाम से भी जाना जाता है

     जिस पर कुलासू गाँव की एक गाय आकर स्वत: ही नियमित रूप से दूध अर्पित कर जाए करती थी !  शाम को गाय दूध ना देने के कारण गाय के स्वामी को कुछ आशंका हुई और उन्होंने आशंका दूर करने का निश्चय किया!

   उन्होंने एक दिन  एक कुल्हाड़ी को साथ लेकर  गाय की निगरानी हेतु गाय के पीछा  करने लगा काफी चलने के पश्चात अंनत उसी उच्च स्थान पर पहुँचने पर गाय ने  नियमित रूप से दूध अर्पित करना आरम्भ कर दिया जिससे गाय के स्वामी ने आक्रोशवश  उस बालक रुपी स्वयंभो पर कुल्हाड़ी से प्रहार कर दिया फलस्वरूप स्वयंभो दो हिस्सो में विभाजित हो गया!

लोककथाओं अनुसार उस व्यक्ति के स्वप्न में स्वत: वह बालक रुपी स्वयंभो आया और उसी स्थान पर विभाजित टुकडो को एकत्रित कर मंदिर बनाने की बात कही तत्पश्चात वहाँ पर एक छोटे से मंदिर की स्थापना हुई थी!
   कई वर्षों पश्चात् एक बार फिर से सन् 1962 में श्री बैजराम (भज्जराम) ड़ड़रियाल जी द्वारा मंदिर का जीणोउधार  किया गया !

https://www.atulyaaalekh.com/2022/02/1-2-3-4-5-httpsdailyroutine484.html

जिससे इस महादेव मंदिर की  लोकमान्यता ओर  विशवास लोगों के प्रति ओर अधिक बढ गयी अगर आप आज भी ज्वालेश्वर महादेव जी के दर्शन करने के लिए जायेंगे तो वहाँ आपको लिखा हुआ मिल जायेगा !
एक बार पुनः सन् 1999 में ज्वालेश्वर मंदिर का पुनः जीणोउथार किया गया और आज इसकी छवि देखने योग्य है

भक्तों की आस्था

    यूँ तो यहाँ भक्तो का आना जाना लगा रहता है किन्तु अगर सावन के महीने में सोमवार के दिनों को देखा जाए तो यहाँ  लोगों की आस्था देखने योग्य बनती है यूँ तो फाल्गुन शिवरात्रि में भी भक्तों की आस्था भी बनी रहती है किन्तु सावन के सोमवार का विशेष महत्व माना जाता है!

नियम और शर्तें

इस ज्वालेश्वर महादेव मंदिर में बाहरी जल चढाना वर्जित माना जाता है मात्र 100 मीटर की दूरी पर प्राकृतिक जल प्रवाह है जोकि डिगी के नाम से विख्यात है वंही का जल चढना मान्या है ! 
इस मंदिर में तेल का दीपक वर्जित माना जाता है मात्र घी का दीपक ही मान्या है अगर किसी कारण घी भी मिलावटी हो तो मंदिर में  चिंटियाँ प्रवेश कर जाती है
  ज्वालेश्वर महादेव जी की मात्र अर्द्ध परिक्रमा ही की जाती है और यहाँ कोई भी मनोकामना सत प्रतिशत पूर्णतः सफल होती है !

    ||   जय भोलेनाथ ज्वालेश्वर महादेव ||
 
 


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