कविता संग्रह
शीर्षक : गांव को शहर में बदलते हुए देखा है,
जहां मां के कदमों की आहट,मुर्गे कि बांग हमें जगाया करती थी,
वहां अलार्म घड़ी का शोर सुनाई देता है,
जहां तपती दुपहरी पेड़ों तले हम छांव ढुंढा करते थे,
आज वहीं घरों कि दिवारो पर पंखे लटकते देखा है,
हां, मैंने गांव को शहर में बदलते हुए देखा है,
थके हुए तन से जब हम पानी पानी करते थे,
जल स्रोतों का मीठा पानी,
जीवन अमृत बरसते थे,
अब हर घर नल लगे हुए,
हर घर में फ्रिज को लगा देखा है,
हां, मैंने गांव को शहर में बदलते हुए देखा है,
सज्ज धज्ज कर बैलों कि जोड़ी,
खेतों से सोना बरसाया करती थी ,
उन्ह खेतों में लोगों को ट्रेक्टर चलाते देखा है,
गेहूं,धान, सरसों कि फसलें,
हर मौसम लहराया करती थी,
उन्ह खेतों को धीरे धीरे बंजर होते देखा है,
हां, मैंने गांव को शहर में बदलते हुए देखा है,
खानपान भी हो गया अब मोडर्न,
चाउमीन पिज्जा , खाते है,
थडिया, चौंफला, लोकनृत्य छोड़ कर,
डी . जे सोंग बजाते देखा है,
हां, मैंने गांव को शहर में बदलते हुए देखा है,
कट गये पहाड़ सारे,
लंबी चौड़ी सड़कें हैं,
चलती है अब बड़ी गाड़ियां,
जिन्हें धूल, धुआं , उड़ाते देखा है
हां, मैंने गांव को शहर में बदलते हुए देखा है,
बदला नही तो यहां का मौसम,
आज भी ठ़ण्डी ताजा हवाऐं तन मन को छू जाती है,
आम के पेड़ों पर आज भी कोयल गाती है,
गांव के आंगन में, वो छोटी सी चिड़िया,
जाने क्या कह जाती है,
पैरों से लिपट कर गांव कि मिट्टी,
हम से कहती है,
गांव बदल रहा है, तुम ना बदलना,
हो जाऊं मै शहर भले,
यादों में तुम मुझे जिंदा रखना,
खुश था कभी गांव मेरा,
आज बेबश सा देखा है,
हां, मैंने गांव को शहर में बदलते हुए देखा है,