तीलू रौतेली का इतिहास
# तीलू रौतेली परिचय
# तीलू रौतेली का जन्म
# तीलू रौतेली की सगाई
# पौराणिक कथाएं
# कौथिग जाने की जिद्द
# तीलू रौतेली का रणकौशल
यूँ तो भारतीय इतिहास आदि काल से ही वीरांगनाओं की वीर गाथाओं से गौरवान्वित रहा है ,और भारतवर्ष में एक से बढ़कर एक वीरांगना हुई है जैसे चाँद बीबी रजिया सुल्तान raziya sultan और झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई इत्यादि
uttrakhand की उस वीरबाला ने पिता,भाईयों,और मंगेतर की शहादत के लिएतीलू रौतेली ने मात्र 15 वर्ष की किशोर अवस्था में ही उठा लिए थे हथियार ???
तीलू रौतेली का परिचय
Tilu Rauteli Introduction
तीलू रौतेली यूँँ तो किसी परिचय introduction की मोहताज नही है किन्तु आज की पीढी़ के समक्ष शायद ये छवि विलुप्त होकर दम तोड़ रही है | और उत्तराखण्ड की ही नव पीढी़ को तीलू रौतेली वीरबाला का अंश भर का भी ज्ञान नहीं है |जिस प्रकार तीलू रौतेली ने झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई से कई दशकों पूर्व अपनी वीरता शौर्य साहस और पराक्रम का परिचय दिया था उस तरह से उसकी छबि लोकगाथा उत्तराखण्ड के कुछ ही क्षेत्रों तक सीमित रही कर आज विस्मृती की कगार पर है |
तीलू रौतेली का जन्म
तीलू रौतेली tilu rauteli की जन्म की कोई भी तिथि स्पष्ट रुप से ज्ञात नहीं है, किन्तु 8 अगस्त को गढ़वाल में तीलू रौतेली की जयंती मनायी जाती है |
देवभूमि उत्तराखंण्ड के पौड़ी गढ़वाल परगना चौंदकोट गुराड़ तल्ला गाँव में पिता भूपसिह रावत( गोर्ला) और माता मैणादेवी के घर 8 अगस्त 1661 को ,दो बड़े भाईयों भगतू और पत्वा के बाद तीलू रौतेली का जन्म हुआ था !
तीलू रौतेली ने छोटी उम्र से ही गुरु शिबू पोखरियाल से घुड़सवारी और तलवार बाजी talwarbaji सिखने की शुरुआत कर ली थी !
उस समय गढ़वाल में पृथ्वीशाह का राज था,और तीलु रौंतेली के पिता भूपसिंह रावत गोर्ला गढ़वाल नरेश पृथ्वीशाह या (फतहशाह)के दरबार में सम्मानित थोकदार हुआ करते थे उनके पास 42 गाँव की थोकदारी मानी जाती है |तीलू रौतेली की सगाई
तीलू रौंतेली की सगाई कम आयु में ही चौंदकोट ईड़ा गाँव के थोकदार भुम्या सिंह नेगी के सुपुत्र भवानी सिंह नेगी के साथ बड़े धुमधाम से सगाई की गई थी |किन्तु समय को कुछ और ही मंजूर था , शादी के पूर्व ही भवानी सिंह जो तीलू रौंतेली का मंगेतर था ,कांड़ा युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो गयें , तब से तीलू रौतेली ने विवाह ना करने का निश्चय कर लिया |
पौराणिक कथाएं
Mythologyके अनुसार उस समय गढ़वाल राजाओं और कत्यूरी राजाओं के बीच युद्ध होना आम माना जाता था ! और युद्ध परिणाम पर ही सीमाएँ निर्धारित की जाती थी !
पौराणिक कथाओं के अनुसार1670-75 के आसपास कुमाऊँ गढ़वाल में धामशाही नाम का एक क्रूर राजा बताया जाता है ! उसने एक बार अपनी सेना का मजबूती से गठन किय और गढ़वाल पर धावा बोल दिया!गढनरेश मानशाह और उनकी सेना ने खैरागढ़ में धामशाही का ड़टकर मुकाबला किया किन्तु हमेशा विजयश्री ही साथ नहीं देती , मानशाह को जान बचाकर युद्ध का सारा दारोमदार भुपसिंह को सौंपकर अनन्त: चाँदपुर गड़ी में शरण लेनी पड़ी !
भुपसिंह और उनके दोनों पुत्रों ने अलग अलग ड़टकर मुकाबला किया लेकिन सराईखेत में भूपसिंह और कांड़ा में भगतू , पत्वा और भवानी सिंह जो कि तीलू रौतेली के मंगेतर थे ! उनको वीरगति प्राप्त हुई |
कौथिग जाने की जिद्द
उस समय सर्दियों के मौसम में कांड़ा में बड़े कौथिग का आयोजन होता था जिसमें भुप सिंह रावत गोर्ला का परिवार हमेशा से हिस्सा लेता था! https://www.atulyaaalekh.com/2022/01/240122.html
तीलू रौतेली को माँ की इस बात ने जैसे झकझोर कर रख दिया और पिता, भाई , और मंगेतर के शोक में तीलू का शौर्य मानों जागृत हो गया, और प्रतिशोध की ज्वाला में तीलू रौतेली ने सौगंध ली कि जब तक पिता, भाई, और मंगेतर की शहादत का बदला पुरा नही होता वो कौथिग नहीं जाएगी!
फिर तीलू ने सल्टमहादेव, मासीगढ और सराईखेत, सराईखेत में तीलू रौतेली और कत्यूरी सेना में घमासान युद्ध हुआ और तीलू ने ये युद्ध जीत कर अपने पिता की शहादत का बदला पूरा किया किन्तु इस युद्ध में तीलू की प्रिय घोड़ी बिंदुली दुश्मनों का शिकार बनी और शहीद हो गई !
तीलू जहाँ भी जाती सर्वप्रथम वहाँ की कुलदेवी की पूजा अर्चना करती जिससे वहाँ के स्थानिय लोगों का भरपूर साथ मिलता था !
सरांईखैत जीतने के उपरांत तीलू ने उफराईखाल , कालिकाखाल, डुमेलागढ " भिलण भौण " में कत्यूरी सेना के साथ युद्ध करते हुए तीलू रौतेली की सहेलियाँ बैलू और देवकी शहीद हो गई,तथा चोखुटिया सहित तीलू ने मात्र 7 वर्षों में 13 विजय प्राप्त की
इस प्रकार 1683 में तीलू रौतेली ने 7 वर्षों में 13 किले जीतकर ,तीलू रौतेली गढ़वाल कुमाऊँ सीमा निर्धारित कर विजय उत्सव मनाते हुए अपनी सैन्य दल के साथ वापस आ रही आ रही थी !
कि 15 मई 1683 को तल्ला कांड़ा के नीचे नयार नदी में अलग अलग लोगों की धारणाओं के अनुसार
तीलू रौतेली ने सभी सैनिकों को विश्राम करने का आदेश देकर स्वत: नयार नदी में तरोताजा होने को सारे अश्त्र शस्त्र नदी तट पर रखकर पानी पीने लगी !
कि तभी इसी बीच रामू रजवान नाम का एक कत्यूरी सैनिक लोकगाथाओं के अनुसार एक लम्बे समय से तीलू रौतेली का पीछा कर रहा था अवसर पाकर पीछे से घात लगाकर हमला कर दिया , घायल तीलू ने उस सैनिक को वहीँ पर ढेर कर दिया !
परन्तु घाव इतना गहरा था कि तीलू रौतेली भी जीवित ना रही सकी और वीरगति को प्राप्त हो गई तीलू रौतेली की मृत्यु बहुत ही हृदय विदारक रही थी |
और इस बार भी तीलू रौतेली ने अपनी माँ मैंणादेवी से कौथिग जाने की लालसा जताई तो,मैंणादेवी ने ''पति पुत्र और दामाद का शोक बताते हुए '' सारा क्रोध उड़ेलते हुए कहा !
,, अरे मूर्ख अभी अभी तो युद्ध में तेरे पिता भाई और मंगेतर वीरगति को प्राप्त हुएं है , और तेरे को कौथिग जाने की लालसा हो रही है,कुछ तो शर्म कर कुछ करना ही है तो युद्ध की तैयारी कर और अपने पिता भाई और मंगेतर की धामशाही से शाहदत का बदला ले ! तब कौथिग जाने की बात करनातीलू रौतेली को माँ की इस बात ने जैसे झकझोर कर रख दिया और पिता, भाई , और मंगेतर के शोक में तीलू का शौर्य मानों जागृत हो गया, और प्रतिशोध की ज्वाला में तीलू रौतेली ने सौगंध ली कि जब तक पिता, भाई, और मंगेतर की शहादत का बदला पुरा नही होता वो कौथिग नहीं जाएगी!
तीलू रौतेली का रणकौशल
" तीलू रौतेली 15 वर्ष की खेलने कूदने की उम्र में थाम लिये थे हथियार " 'तीलू ने अपने मामा रामू भण्ड़ारी गुरु और मुख्य सलाहकार शिबू पोखियाल सहेलियाँ बैलू, और देवकी या रक्की " इत्यादि लोगों की मदद से एक मजबूत सेना का गठन किया !
सर्वप्रथम तीलू रौतेली ने खैरागढ को जीता उसके बाद टकोलीगढ फिर इण्ड़ियाकोट को जीतकर वहाँ पर भौना देवी का मन्दिर स्थापित किया भीमखाल, उमरागढी बीरोंखाल , किन्तु वीरोखाल में तीलू के मामा रामू भण्ड़ारी लड़ते लड़ते शहीद हो गयें!फिर तीलू ने सल्टमहादेव, मासीगढ और सराईखेत, सराईखेत में तीलू रौतेली और कत्यूरी सेना में घमासान युद्ध हुआ और तीलू ने ये युद्ध जीत कर अपने पिता की शहादत का बदला पूरा किया किन्तु इस युद्ध में तीलू की प्रिय घोड़ी बिंदुली दुश्मनों का शिकार बनी और शहीद हो गई !
तीलू जहाँ भी जाती सर्वप्रथम वहाँ की कुलदेवी की पूजा अर्चना करती जिससे वहाँ के स्थानिय लोगों का भरपूर साथ मिलता था !
सरांईखैत जीतने के उपरांत तीलू ने उफराईखाल , कालिकाखाल, डुमेलागढ " भिलण भौण " में कत्यूरी सेना के साथ युद्ध करते हुए तीलू रौतेली की सहेलियाँ बैलू और देवकी शहीद हो गई,तथा चोखुटिया सहित तीलू ने मात्र 7 वर्षों में 13 विजय प्राप्त की
इस प्रकार 1683 में तीलू रौतेली ने 7 वर्षों में 13 किले जीतकर ,तीलू रौतेली गढ़वाल कुमाऊँ सीमा निर्धारित कर विजय उत्सव मनाते हुए अपनी सैन्य दल के साथ वापस आ रही आ रही थी !
कि 15 मई 1683 को तल्ला कांड़ा के नीचे नयार नदी में अलग अलग लोगों की धारणाओं के अनुसार
तीलू रौतेली ने सभी सैनिकों को विश्राम करने का आदेश देकर स्वत: नयार नदी में तरोताजा होने को सारे अश्त्र शस्त्र नदी तट पर रखकर पानी पीने लगी !
कि तभी इसी बीच रामू रजवान नाम का एक कत्यूरी सैनिक लोकगाथाओं के अनुसार एक लम्बे समय से तीलू रौतेली का पीछा कर रहा था अवसर पाकर पीछे से घात लगाकर हमला कर दिया , घायल तीलू ने उस सैनिक को वहीँ पर ढेर कर दिया !
https://www.atulyaaalekh.com/2022/01/16012022.html
परन्तु घाव इतना गहरा था कि तीलू रौतेली भी जीवित ना रही सकी और वीरगति को प्राप्त हो गई तीलू रौतेली की मृत्यु बहुत ही हृदय विदारक रही थी |
बड़े दुखद और आश्चर्य के साथ कहना पड़ता है कि जिस प्रकार तीलू रौतेली ने झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई से कई दशको पूर्व शौर्य साहस और पराक्रम का परिचय दिया था उसके बावजूद तीलू रौतेली की लोकगाथा सिर्फ उत्तराखण्ड के कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित रहकर आज दम तोड़ने की कगार पर है
यूँ तो तीलू रौतेली की जीवन गाथा सीमित शब्दों में समेटना आसान नहीं किन्तु जितना भी सम्भव हुआ कोशिश करने का छोटा सा प्रयास किया है कहीं कोई कमी ( त्रुटि) रह गई हो तो अपनी प्रतिक्रियाओं द्वारा अवगत कराने का कष्ट करे ||
यूँ तो तीलू रौतेली की जीवन गाथा सीमित शब्दों में समेटना आसान नहीं किन्तु जितना भी सम्भव हुआ कोशिश करने का छोटा सा प्रयास किया है कहीं कोई कमी ( त्रुटि) रह गई हो तो अपनी प्रतिक्रियाओं द्वारा अवगत कराने का कष्ट करे ||