ज्वाल्पा देवी उत्तराखंड jwalpa devi mandir uttarakhand
1 स्थापना
2 अखंड जोत
3 पौराणिक कथाएं
4 मनइच्छा पूर्ण करती है माँ ज्वाल्पा
5 आवागमन
यूँ तो पूरे उत्तराखण्ड के कण कण में देवी देवताओं वास है,यही कारण है कि uttrakhand को देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है|
पुरा uttrakhand देबी देबताओं के मन्दिरों से भरा पड़ा है तथा हर मन्दिर Temple से एक रहस्यमयी Mystery कहानीयांँ Stories जुडी हुई है. यहाँ लगभग हर कौश पर आपको कोई ना कोई छोटा बड़ा मन्दिर जरूर Sure मिल जायेगा और उससे जुडी पौराणिक कथाएँ भी | किन्तु आज हम कोटद्वार पौड़ी के मध्य राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित के विषय में बात करने वाले है |
यह मन्दिर, कोटद्वार से 71 और पौड़ी से 34 किलोमीटर की दूरी पर नयार नावालिका नदी के किनारे पर स्थित है |
# स्थापना #
यह मन्दिर एक पौराणिक Mythical मन्दिर है जिसकी स्थापना लगभग सवासौ साल पूर्व 19 मार्च 1892 को की गई थी , कहते हे कि यह मन्दिर मुख्या रूप से Mainly माँ पार्वती को समर्पित है |
इसका उल्लेख आपको विष्णु पुराण तथा स्कन्द पुराण मे देखने को मिल जायेगा ! जो कि आदि गुरु शंकराचार्य जी द्वारा उल्लेखनीय है |
आप लोगो की जानकारी के लिए बता दे कि इस जगह को कभी अमकोटि नाम से भी जाना जाता था तब यहाँ रात बिताने का साधन होने के कारण एक छोटी सी धर्मशाला हुआ करती थी |
जय माँ ज्वाल्प akhand jyot
यहाँ निरन्तर अखण्ड ज्योति जलती (प्रज्ज्वलित ) रहती है आज से 25 - 30 वर्ष पूर्व पुरे इलाके से ( लज्ञा ) सरसों एकत्रित करके उस तेल से यह निरन्तर रात दिन अखण्ड जौत प्रज्ज्वलित रहती थी |
किन्तु आज मन्दिर समिति या पुजारी जी स्वयं ही तेल की व्यवस्था करने में सक्षम हैं! तथा अखण्ड जौत प्रज्ज्वलित रखते हैं |
# पौराणिक कथाएं
एक पुराने समय की बात है तब आवागमन का साधन ना होने के कारणवस लोग ( ढांकर) काफिले बनाकर सामन इत्यादि के लिए कोटद्वार या शहरी इलाकों में जाते थे और नमक तेल गुड इत्यादि सामान लाते थे |
एक बार ढांकर लाते वक्त अमकटि धर्मशाला से तरोताजा होकर ढांकरी घर को निकलने को अपना अपना समान उठाने लगे किन्तु ( कफुला बिष्ट) नामक व्यक्ति का समान जो कट्टे में था वह कट्टा उठाना मुश्किल हो गया और अधिक प्रयास करने पर कट्टा फटकर जमीन में धस गया और एक मुर्ति स्थापित हो गयी |
और इससे भी अचम्भित यह है कि नोगांव के श्री दत्ताराम जी भैंस स्वत: ही खुलकर रोजाना उस स्थापित मूर्त्ति में दूध चढ़ा आती थी |
जब इस बात की जानकारी परिवार जनो को हुईं तो हेरानी भी हुई और आक्रोश भी !
उसी आक्रोश के मारे किसी ने भैंस पर लठ मार दिया किन्तु लठ भैंस के बजाय मुर्ति पर लगा ! और मुर्ति से कुछ रक्त बिन्दु स्थापित हो गये !
और पुरे इलाके में अमकोटि एक चर्चा का विषय बन गया | तब श्री दत्ताराम जी ने 🙏 माँ ज्वाल्पा 🙏की स्थापना करायी, और आज दिन प्रतिदिन भक्तों की आस्था देखने योग्य है |
इसी कारण इसे थपल्याऴों तथा बिष्टों की कुलदेवी कही जाती है ! और मूलतः पुजारी नौगांव अण्डैंथ तथा कौला से ही होते हैं !
# मनइच्छा पूर्ण करती है माँ ज्वाल्पा #
jwalpa devi mandir के कपाट भक्तों के लिए साल भर खुले रहते हैं सुबह सुर्योउदय से लेकर शाम सुर्या अस्त तक | यूँ तो माता के मन्दिर में सदैव भक्तों का तान्ता लगा रहता है |
किन्तु चेत्र मास तथा शरद नवरात्रो में भक्तों का आकलन मुश्किल हो जाता है ! रामनवमी के पर्व पर भक्तों की भीड़ देखने योग्य होती है
यहाँ जिसने भी सच्चे मन से माँ के चरणों में शिश नवाकर जिसने भी कुछ मांगा होगा माँ ज्वाल्पा उसकी मनइच्छा अवश्य पुर्ण करतीं हैं और इसी कारण यहाँ भक्तों की संख्या दिन प्रतिदिन बढती जा रही है |
नवरात्रि के समय मध्य रात्रि में माता के मंदिर में चरण स्पर्श को शेर आता है और शांति पूर्ण ढंग से बिन मारक ( शिकार) के दर्शन उपरांत चला जाता है |
एक समय की बात है नदी का बहाव इतना तीव्र था, कि जल ऊपर वाली सीडियो तक पहुँच गया, किन्तु माता की शक्ति से एक ही किलकारी से स्वत: जलप्रवाह नियंत्रित हो गया
# आवागमन
यहाँ आप मात्र सडक मार्ग से ही आवागमन कर सकते हैं माता के दर्शन के लिए आप दिल्ली से कोटद्वार होते हुए माँ ज्वाल्पा स्थल पहुँच सकते हैं या पौड़ी से भी आप माता के दर्शन प्राप्ति को आ सकते हैं !
सम्पूर्ण जानकारी प॰ श्री बीमल अण्थ्वाल जी द्वारा दी गई जो कि माँ ज्वाल्पा मन्दिर में एक पुजारी जी भी है |
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Nice article ��❤️
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